
उपराष्ट्रपति ने डॉ. मुखर्जी के उद्घोष को बताया राष्ट्रीय एकता का प्रतीक, शिक्षा को आत्मबोध और लोकतंत्र की प्रेरणा
23 जून 2025, नई दिल्ली
भारत के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उनका उद्घोष— “एक विधान, एक निशान, एक प्रधान” — भारत की एकता और अखंडता का प्रतीक है। उपराष्ट्रपति रविवार को उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर में आयोजित कुलपतियों के 99वें वार्षिक अधिवेशन एवं राष्ट्रीय सम्मेलन (2024–2025) के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे।
उपराष्ट्रपति ने कहा, “डॉ. मुखर्जी का बलिदान हमें यह स्मरण कराता है कि देश में एक संविधान, एक ध्वज और एक नेतृत्व ही होगा। अनुच्छेद 370 और 35A ने जम्मू-कश्मीर को वर्षों तक लहूलुहान किया और नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित किया।” उन्होंने 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 की समाप्ति और 11 दिसंबर 2023 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस पर मुहर लगाने को ऐतिहासिक करार दिया।
शिक्षा को आत्मबोध का माध्यम बताया
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह नीति केवल कौशल नहीं, बल्कि आत्मबोध और भारतीय सभ्यता के मूल्यों पर आधारित है। उन्होंने कहा, “शिक्षा असमानताओं को समाप्त करती है, लोकतंत्र को जीवन देती है और नागरिकों में चेतना जगाती है। हमारी शिक्षा नीति इसी दृष्टिकोण को सशक्त करती है।”
उन्होंने विश्वविद्यालयों की भूमिका को नवाचार और विचारों की प्रयोगशाला के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहा कि, “विश्वविद्यालय केवल डिग्री देने के केंद्र नहीं, बल्कि विचारों और बदलाव के तीर्थ हों। यहां संवाद, असहमति, चर्चा और वाद-विवाद की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए।”
“भारत ज्ञान का वैश्विक केंद्र बने”
अपने संबोधन में उपराष्ट्रपति ने भारत की प्रगति की सराहना करते हुए कहा कि अब देश स्टार्टअप्स, यूनिकॉर्न्स और नवाचार की भूमि बन चुका है। उन्होंने कहा, “भारत को अब पश्चिमी नवाचारों का अनुकरण नहीं करना है, बल्कि वैश्विक ज्ञान केंद्र बनना है। शिक्षा अब केवल सार्वजनिक उपकार नहीं, बल्कि हमारी रणनीतिक राष्ट्रीय पूंजी है।”
उन्होंने कुलपतियों से आह्वान किया कि वे AI, जलवायु तकनीक, क्वांटम विज्ञान, और डिजिटल नैतिकता जैसे उभरते क्षेत्रों में उत्कृष्ट संस्थान स्थापित करने के लिए कार्य करें। साथ ही, उन्होंने ग्रीनफील्ड विश्वविद्यालयों की स्थापना पर ज़ोर देते हुए कहा कि “हमें शहरी क्षेत्रों से आगे बढ़कर शिक्षा के वंचित क्षेत्रों तक पहुँचना होगा।”
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कुलपतियों को दी विशेष भूमिका निभाने की सलाह
उपराष्ट्रपति ने कुलपतियों को उच्च शिक्षा के व्यावसायीकरण और वस्तुकरण के विरुद्ध प्रहरी बताते हुए कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को सुलभ, सस्ती और न्यायसंगत रूप में उपलब्ध कराना उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा, “विश्वविद्यालय ऐसे संस्थान बनें जो असंभव लगने वाले, लेकिन परिवर्तनकारी निर्णयों की प्रयोगशाला बनें।”
उपस्थित गणमान्य व्यक्तित्व
इस अवसर पर उत्तर प्रदेश सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी एवं इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्री श्री सुनील कुमार शर्मा, एमिटी एजुकेशन एंड रिसर्च ग्रुप के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. अशोक के. चौहान, एआईयू के अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पाठक, और महासचिव डॉ. (श्रीमती) पंकज मित्तल सहित देशभर के अनेक कुलपति, शिक्षाविद् और गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
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