
भारतीय संगीत जगत के अमर शिक्षक और मार्गदर्शक स्वर्गीय हीरालाल चतुर्वेदी ‘गुरुजी’ को उनकी 48वीं पुण्यतिथि पर सम्मान और श्रद्धा के साथ याद किया गया। गुरुजी न केवल संगीत के कुशल शिक्षक थे, बल्कि अनुशासन, समर्पण और मानवता के प्रतीक भी थे। पुरानी दिल्ली में वे संगीत प्रेमियों और शिष्यों के लिए प्रेरणा का स्रोत थे।
राजस्थान से दिल्ली तक: गुरुजी का संगीत सफर और योगदान
1914 में राजस्थान के भरतपुर जिले के ताखा गांव से दिल्ली आकर गुरुजी ने संगीत की परंपरा को न केवल जीवित रखा, बल्कि उसे नई ऊँचाइयों तक पहुंचाया। उन्होंने संगीत विद्यालय की स्थापना कर शास्त्रीय संगीत को हर उम्र और वर्ग के लोगों तक पहुँचाया। उनके सैकड़ों शिष्य आज राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का नाम रोशन कर रहे हैं।
गुरुजी की विरासत और परिवार का संदेश
उनके सुपुत्र विजय शंकर चतुर्वेदी, जो राष्ट्र टाइम्स के संपादक हैं, ने कहा,
“बाबूजी की विरासत केवल संगीत तक सीमित नहीं, बल्कि समाज के अनेक क्षेत्रों में फैली हुई है।”
गुरुजी की पुण्यतिथि पर परिवार, शिष्य और संगीत प्रेमी मिलकर उनकी अमूल्य सेवा और योगदान को नमन कर रहे हैं।
पुण्यतिथि समारोह: संगीत विद्यालय में भावपूर्ण श्रद्धांजलि
उनके पुराने संगीत विद्यालय में विशेष सभा का आयोजन किया गया, जहाँ शिष्यों ने रागों के माध्यम से गुरुजी को श्रद्धासुमन अर्पित किए। इस अवसर पर गुरुजी के जीवन और संगीत के प्रति समर्पण को याद करते हुए भावुक क्षण देखे गए।
गुरुजी की प्रेरणा: संगीत और संस्कृति के अनमोल रत्न
स्वर्गीय हीरालाल चतुर्वेदी जैसे महान व्यक्तित्व सदियों में एक बार जन्म लेते हैं। उनका जीवन और कार्य आज भी अनगिनत कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। भारतीय संगीत जगत गुरुजी की अमर सेवा और योगदान के लिए सदैव ऋणी रहेगा।