
- सुप्रीम कोर्ट ने 9 जून को अगली सुनवाई तय की, पत्रकारों ने गिरफ्तारी से सुरक्षा की लगाई गुहार
- पत्रकारों का आरोप – पुलिस ने धमकाया, पीटा और झूठे बयान देने को किया मजबूर
नई दिल्ली, अवैध रेत खनन पर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों के साथ कथित पुलिस ज्यादती के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। पत्रकार शशिकांत जाटव और अमरकांत सिंह चौहान की ओर से दाखिल याचिका पर न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने सुनवाई की और अगली सुनवाई की तारीख 9 जून तय की।
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से गिरफ्तारी से अंतरिम राहत की मांग की है, यह कहते हुए कि उन्हें जान का खतरा है और उनके पत्रकारिता कार्य को दबाने की कोशिश की जा रही है।
हाईकोर्ट से सुरक्षा पाने के बाद भी नहीं रुकीं धमकियां
इस याचिका से कुछ सप्ताह पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने पत्रकार अमरकांत सिंह चौहान को दो महीने की सुरक्षा प्रदान करने के निर्देश दिए थे। चौहान, जो स्वराज एक्सप्रेस के भिंड ब्यूरो प्रमुख हैं, ने बताया था कि पुलिस की धमकियों के चलते उन्हें राज्य छोड़ना पड़ा। उन्होंने अदालत में यह भी कहा कि अवैध रेत खनन पर रिपोर्टिंग के बाद उन्हें लगातार टारगेट किया जा रहा है।
दिल्ली हाईकोर्ट की एकल पीठ ने दिल्ली पुलिस को चौहान को सुरक्षा देने और भविष्य की राहत के लिए मध्य प्रदेश में याचिका दायर करने की सलाह दी थी। इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता वरीशा फ़ारसत, तमन्ना पंकज, अनिरुद्ध रमणाथन और प्रिया वत्स ने चौहान का पक्ष रखा।
कई पत्रकारों को प्रताड़ित करने के आरोप
चौहान की याचिका में दावा किया गया है कि मध्य प्रदेश में स्वतंत्र पत्रकारों को व्यवस्थित रूप से डराने की साजिश रची जा रही है। याचिका में बताया गया कि धर्मेंद्र ओझा (न्यूज़ 24), शशिकांत जाटव (बेजोड़ रत्न), और प्रीतम सिंह (NTV भारत) सहित कई पत्रकारों को भिंड एसपी ऑफिस में बुलाकर मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना दी गई।
आरोप है कि पुलिस ने इन पत्रकारों से कपड़े उतरवाकर मारपीट की, मोबाइल फोन जब्त किए और उन्हें जबरन कैमरे के सामने झूठा बयान देने के लिए बाध्य किया गया कि “मामला सुलझा लिया गया है।”
“हम केवल पत्रकार धर्म निभा रहे थे” – शशिकांत जाटव
घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए पत्रकार शशिकांत जाटव ने कहा,
“मुझे भारत के सर्वोच्च न्यायालय पर पूरा भरोसा है। हम सिर्फ अपना कर्तव्य निभा रहे थे। हमने उस भ्रष्टाचार को उजागर किया, जो न केवल पर्यावरण को बल्कि इंसानी जीवन को भी नुकसान पहुंचा रहा है। हमें उम्मीद है कि हमें न्याय मिलेगा।”
“यह लोकतंत्र पर हमला है” – वरिष्ठ पत्रकार
वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार शर्मा ने कहा,
“यह हमला सिर्फ कुछ पत्रकारों पर नहीं है, बल्कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर सीधा हमला है। इस तरह की सरकारी मनमानी पर अंकुश जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप यह भरोसा दिलाता है कि देश में न्याय की आशा अब भी ज़िंदा है।”
प्रेस की स्वतंत्रता पर बड़ा सवाल
यह मामला न केवल स्वतंत्र पत्रकारिता की चुनौतियों को सामने लाता है, बल्कि प्रेस की स्वतंत्रता और पत्रकारों की सुरक्षा पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। सुप्रीम कोर्ट में चल रही यह सुनवाई तय करेगी कि क्या हमारा न्यायिक तंत्र अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने में सक्षम है।