क्रिप्टो एसेट्स पर वैश्विक नियमन: एकजुटता और समन्वय की सख्त जरूरत

आज के समय में जब वैश्विक राजनीति, विचारधाराओं और अर्थव्यवस्थाओं में अस्थिरता तेज़ी से बढ़ रही है, क्रिप्टो एसेट्स अब केवल तकनीकी प्रयोग भर नहीं रह गए हैं। वे वैश्विक वित्तीय प्रणाली के केंद्र में आकर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं।

यूरोपीय सेंट्रल बैंक की प्रमुख क्रिस्टीन लेगार्ड ने अप्रैल 2025 में इंटरनेशनल मॉनेटरी एंड फाइनेंशियल कमिटी (IMFC) की बैठक में इस बदलाव की ओर ध्यान दिलाया। उन्होंने वैश्विक नीति-निर्माताओं से अपील की कि वे क्रिप्टो से जुड़ी जटिलताओं को हल्के में न लें और इनसे निपटने के लिए तैयार रहें। उन्होंने खास तौर पर वैश्विक स्तर पर सहयोग के साथ मजबूत और सतर्क वित्तीय नीतियों को अपनाने पर ज़ोर दिया।

लेगार्ड की यह चेतावनी उन संस्थाओं की चिंताओं से मेल खाती है जो अंतरराष्ट्रीय वित्तीय मानकों को निर्धारित करती हैं—जैसे बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (BIS), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), फाइनेंशियल स्टेबिलिटी बोर्ड (FSB) और बेसल बैंकिंग पर्यवेक्षण समिति (BCBS)। इन सभी की हालिया रिपोर्टें बताती हैं कि स्टेबलकॉइन्स, विकेंद्रीकृत वित्त (DeFi) और संस्थागत निवेश के बढ़ते प्रभाव के चलते अब क्रिप्टो से जुड़े खतरे केवल सीमित नहीं रह गए, बल्कि पूरे वैश्विक वित्तीय ढांचे के लिए खतरा बन सकते हैं। ऐसे में समन्वित और वैश्विक नीति प्रयास अनिवार्य हो गए हैं।

IMF की अप्रैल 2025 में आई Global Financial Stability Report (GFSR) में इस स्थिति को विस्तार से बताया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, बिटकॉइन ने 2024 के अंत से जबरदस्त रिटर्न दिए हैं, और इसके एक्सचेंज-ट्रेडेड प्रोडक्ट्स (ETPs) में निवेश $100 बिलियन से अधिक हो चुका है। इससे खुदरा और संस्थागत स्तर पर क्रिप्टो की लोकप्रियता का पता चलता है। साथ ही, स्टेबलकॉइन बाज़ार की कुल वैल्यू $200 बिलियन पार कर चुकी है, जिसकी वजह अमेरिका में सकारात्मक नियामक संकेत माने जा रहे हैं।

 

लेकिन इस तेज़ रफ्तार के साथ-साथ अस्थिरता भी लौट आई है। इस वर्ष बिटकॉइन की कीमतों में 25% तक की गिरावट आ चुकी है। IMF का कहना है कि अब शेयर बाज़ार की हलचलें सीधे क्रिप्टो पर असर डालती हैं, जो बताता है कि क्रिप्टो और पारंपरिक वित्तीय परिसंपत्तियों के बीच संबंध गहराता जा रहा है। इससे यह खतरा बढ़ जाता है कि क्रिप्टो बाज़ार में हलचल पूरे वित्तीय तंत्र को प्रभावित कर सकती है।

Christine Lagarde, President of the European Central Bank

IMF ने यह भी आगाह किया है कि यदि स्पष्ट नियमों के बिना क्रिप्टो को तेज़ी से अपनाया गया, खासकर विकासशील और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में, तो इससे पूंजी पलायन, मौद्रिक संप्रभुता की हानि और गैरकानूनी गतिविधियों की आशंका बढ़ सकती है। ऐसे में IMF ने नियामकीय स्पष्टता, टोकन आधारित संपत्तियों की निगरानी और FSB–IMF के संयुक्त वैश्विक रोडमैप को अपनाने की सिफारिश की है।

विश्व की प्रमुख नियामक एजेंसियां इस बात पर एकमत हैं कि केवल सख्त और समन्वित रेगुलेशन ही इन जोखिमों को प्रभावी ढंग से कम कर सकता है। एक वैश्विक निगरानी तंत्र न केवल विभिन्न देशों में नीति विरोधाभास को दूर करेगा, बल्कि अवैध गतिविधियों को रोकने और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने में भी मदद करेगा। साथ ही यह जिम्मेदार नवाचार को भी प्रोत्साहित करेगा।

ECB, IMF, BIS, FSB, IOSCO और BCBS जैसी संस्थाओं की लगातार दी जा रही चेतावनियों से यह स्पष्ट हो गया है कि क्रिप्टो को अब ‘सीमांत तकनीक’ नहीं माना जा सकता। इसका दायरा और असर इतना व्यापक हो चुका है कि इसके लिए वैश्विक स्तर पर संगठित नीति प्रतिक्रिया ज़रूरी हो गई है।

ऐसे में जब विश्व के अनेक देश क्रिप्टो नियमन को लेकर निर्णायक क़दम उठा रहे हैं, भारत की चुप्पी चिंताजनक और खतरनाक लगने लगी है। भले ही भारत ने टैक्स और मनी लॉन्ड्रिंग के मसलों पर कुछ सीमित कदम उठाए हों, लेकिन अब तक कोई समग्र नियामकीय ढांचा या स्पष्ट नीति दृष्टिकोण सामने नहीं आया है। यह स्थिति तब और विरोधाभासी लगती है जब यह देखा जाए कि भारत ने G20 के क्रिप्टो रोडमैप में अग्रणी भूमिका निभाई है।

यह बात समझना जरूरी है कि नियमन का मकसद नवाचार को रोकना नहीं, बल्कि उसे सुरक्षित, पारदर्शी और टिकाऊ बनाना है। अब सवाल यह नहीं रह गया कि क्रिप्टो को रेगुलेट किया जाए या नहीं, बल्कि यह है कि उसे कैसे और किस तरीके से नियमन के दायरे में लाया जाए ताकि न केवल राष्ट्रीय बल्कि वैश्विक वित्तीय स्थिरता भी सुनिश्चित की जा सके।

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