नई रिपोर्ट में सामने आया कि भारतीय उपयोगकर्ताओं की 90% से अधिक क्रिप्टो ट्रेडिंग विदेशी प्लेटफ़ॉर्म पर शिफ्ट हो गई है, जिससे TDS और कैपिटल गेन टैक्स में बड़ा राजस्व अंतर बन रहा है।
4 दिसंबर 2025
भारत की क्रिप्टोकरेंसी नीति पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। TIOL नॉलेज फाउंडेशन की नई रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि वित्त वर्ष 2024–25 में भारतीय उपयोगकर्ताओं ने लगभग ₹4.88 लाख करोड़ की क्रिप्टो ट्रेडिंग ऑफशोर प्लेटफॉर्मों पर की—यानी देश के कर ढांचे से बाहर। यह ट्रेंड बताता है कि सरकार की वर्तमान कर नीति न केवल निवेशकों को विदेश की ओर धकेल रही है, बल्कि देश के राजस्व पर भी बड़ा असर डाल रही है।
“Taxation of Digital Assets in India” शीर्षक वाली इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत से जुड़े कुल क्रिप्टो ट्रेड वॉल्यूम का सिर्फ 8–10% ही घरेलू, अनुपालन करने वाले एक्सचेंजों पर हुआ। बाकी 90% से अधिक ट्रेडिंग विदेशी प्लेटफॉर्मों पर शिफ्ट हो गई, जिनमें कई पर भारत में आधिकारिक रूप से प्रतिबंध है, लेकिन उपयोगकर्ता VPN की मदद से उन तक पहुँच रहे हैं।
TIOL इस स्थिति का प्रमुख कारण 2022 के वित्त अधिनियम को मानता है, जिसके तहत क्रिप्टो पर 30% टैक्स, घाटे की सेट-ऑफ पर रोक और प्रत्येक लेनदेन पर 1% TDS लागू किया गया था। इसका उद्देश्य स्पेकुलेटिव ट्रेड रोकना और डेटा ट्रैकिंग आसान बनाना था, लेकिन इसके उलट घरेलू एक्सचेंजों की गतिविधि में भारी गिरावट देखी गई।
रिपोर्ट में बताया गया है कि FY24–25 में लागू TDS व्यवस्था के चलते, ऑफशोर ट्रेडिंग पर ₹11,000 करोड़ से अधिक TDS वसूल नहीं हो पाया। सिर्फ हाल के 12 महीनों में ही लगभग ₹4,877 करोड़ TDS ‘गायब’ है। वहीं संभावित कैपिटल गेन टैक्स में ₹36,000 करोड़ की चूक आंकी गई है।
अगर यह प्रवृत्ति जारी रही, तो TIOL का अनुमान है कि अगले पांच वर्षों में भारतीय उपयोगकर्ता ₹39.9 लाख करोड़ ऑफशोर क्रिप्टो ट्रेडिंग कर सकते हैं, जिससे FY2030 तक लगभग ₹39,971 करोड़ TDS का नुकसान होगा।
Esya सेंटर और NALSAR लॉ विश्वविद्यालय के पिछले अध्ययनों में भी इसी तरह की तस्वीर सामने आई थी—घरेलू एक्सचेंजों पर वॉल्यूम में 92–97% तक गिरावट और हजारों करोड़ रुपये के राजस्व नुकसान का अनुमान लगाया गया था।
रिपोर्ट का एक और महत्वपूर्ण पहलू P2P ट्रेडिंग चैनलों का उभार है, जहाँ उपयोगकर्ता सीधे आपस में लेनदेन करते हैं और एक्सचेंज केवल एस्क्रो की भूमिका निभाते हैं। इन लेनदेन पर निगरानी बेहद मुश्किल हो जाती है, जिससे कर-अनुपालन और कमजोर पड़ता है।
TIOL ने समाधान के तौर पर सुझाव दिया है कि आयकर अधिनियम की धारा 194S में संशोधन कर घरेलू और विदेशी, दोनों तरह के एक्सचेंजों को भारतीय उपयोगकर्ताओं के लिए TDS काटने के लिए बाध्य किया जाए—चाहे वे रुपये में भुगतान को संभालें या नहीं। इसके अलावा, क्रिप्टो पर कर ढांचे को अन्य एसेट क्लास के समान बनाने और रिपोर्टिंग मानकों को और मजबूत करने की भी सिफारिश की गई है।
रिपोर्ट से साफ है कि भारत में क्रिप्टो रेगुलेशन का वास्तविक प्रभाव अब नीतिगत बहस से आगे बढ़कर राष्ट्रीय राजस्व और वित्तीय निगरानी पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।





