
नई दिल्ली, 28 मई 2025
कांस्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया, नई दिल्ली में आज पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक (पी.डी.ए.) मंच की ओर से एक विचारगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें संसद भवन में स्थापित सेंगोल की वैधानिकता, प्रतीकात्मकता और संवैधानिक प्रभाव पर व्यापक चर्चा हुई। कार्यक्रम का नेतृत्व समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और मोहनलालगंज से सांसद आर. के. चौधरी ने किया, साथ ही समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मनोज यादव ने भी विचार रखे।
सेमिनार का विषय यह था कि सेंगोल, जो ऐतिहासिक रूप से तमिलनाडु में शाही सत्ता के प्रतीक के रूप में प्रयुक्त होता था, क्या लोकतांत्रिक भारत की संसद में स्थापित किया जाना उचित है। वक्ताओं ने स्पष्ट रूप से कहा कि संसद जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों की संस्था है, न कि किसी शासक वर्ग का प्रतीकात्मक स्थल।
आर. के. चौधरी ने सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा,
“सेंगोल एक शाही परंपरा का प्रतीक है, जबकि भारतीय संसद लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था है। संसद में किसी राजचिह्न के बजाय भारतीय संविधान की विशाल प्रति को स्थापित किया जाना चाहिए, ताकि यह सदैव स्मरण रहे कि देश का शासन संविधान द्वारा संचालित होता है, न कि परंपरागत राजसत्तात्मक प्रतीकों से।”
वहीं मनोज यादव ने अपने वक्तव्य में कहा,
“आज जब लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के मूल तत्वों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं, ऐसे समय में संसद में सेंगोल की स्थापना हमारी लोकतांत्रिक मर्यादाओं के विरुद्ध प्रतीत होती है। संविधान ही भारत की आत्मा है, और उसकी सर्वोच्चता ही देश को एकता और न्याय की दिशा में आगे ले जाती है।”
सेमिनार में यह भी कहा गया कि सेंगोल की स्थापना प्रतीकात्मक रूप से न्याय का प्रतिनिधित्व भले करता हो, परंतु उसकी उत्पत्ति शाही परंपरा में है। लोकतांत्रिक संस्थाओं की वैधता और नैतिक आधार संविधान से आता है, न कि किसी राजकीय या धार्मिक प्रतीक से।
वक्ताओं ने सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया कि संसद भवन में संविधान की एक विशाल प्रति को प्रमुखता से स्थापित किया जाए, जिससे लोकतंत्र, समानता और प्रतिनिधित्व के मूल्यों की पुनर्पुष्टि हो सके।
कार्यक्रम के अंत में उपस्थितजनों ने “संविधान को बचाना है, सेंगोल को हटाना है” और “सेंगोल हटाएं – देश बचाएं” जैसे नारों के साथ लोकतांत्रिक मूल्यों के संरक्षण का संकल्प लिया।