
भारत में क्रिप्टोकरेंसी के बढ़ते चलन के साथ इसकी सुरक्षा को लेकर चिंताएं भी तेज हो रही हैं। क्रिप्टो वॉलेट्स और कस्टडी सॉल्यूशंस जैसे डिजिटल टूल्स भले ही विकसित हो चुके हों, लेकिन देश में इनके लिए न तो ठोस नीति है और न ही पर्याप्त घरेलू समाधान। इससे निवेशकों को साइबर हमलों, हैकिंग और डेटा चोरी जैसे गंभीर जोखिमों का सामना करना पड़ रहा है।
क्रिप्टो वॉलेट्स, जो डिजिटल संपत्तियों की सुरक्षा के लिए जरूरी होते हैं, दो मुख्य प्रकार के होते हैं—हॉट वॉलेट्स (इंटरनेट से जुड़े हुए) और कोल्ड वॉलेट्स (ऑफलाइन)। इसके अलावा कस्टोडियल वॉलेट्स में नियंत्रण तीसरे पक्ष के पास होता है, जबकि नॉन-कस्टोडियल वॉलेट्स में पूरी जिम्मेदारी उपयोगकर्ता की होती है। भारत में इन सेवाओं की मांग तो बढ़ी है, लेकिन अब तक कोई राष्ट्रीय स्तर पर विकसित क्रिप्टो वॉलेट या कस्टडी ढांचा नहीं बन पाया है।
विशेषज्ञों के अनुसार, बिना किसी स्पष्ट दिशा-निर्देश के कस्टडी सेवाओं का संचालन पारंपरिक वित्तीय प्रणाली की तुलना में बेहद जोखिमपूर्ण है। यह स्थिति वैसी है जैसे किसी डिपॉजिटरी को बिना लाइसेंस के काम करने दिया जाए। इससे न केवल निवेशकों का भरोसा डगमगाता है बल्कि पूरी प्रणाली असुरक्षित हो जाती है।
सुरक्षा बढ़ाने के लिए विकेंद्रीकृत कस्टडी समाधानों की वकालत की जा रही है, जिनमें सेल्फ-कस्टडी जैसे हार्डवेयर वॉलेट्स, मल्टी-सिग्नेचर वॉलेट्स, मल्टी-फैक्टर ऑथेंटिकेशन और एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन शामिल हैं। ऐसे उपाय उपयोगकर्ताओं को उनकी संपत्तियों पर पूर्ण नियंत्रण और सुरक्षा प्रदान करते हैं।
नीति के अभाव के कारण भारत के निवेशक विदेशी कस्टडी सेवाओं पर निर्भर हो रहे हैं, जिससे पूंजी का देश से बाहर जाना और सुरक्षा में चूक के मामले बढ़ रहे हैं। यह स्थिति न केवल आर्थिक रूप से नुकसानदेह है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भी चिंताजनक है।
सरकार से मांग की जा रही है कि वह क्रिप्टो कस्टडी को लेकर स्पष्ट और सख्त दिशा-निर्देश जारी करे, जिससे एक सुरक्षित, पारदर्शी और विश्वासपात्र क्रिप्टो इकोसिस्टम तैयार किया जा सके। इसके लिए नियामकीय सैंडबॉक्स, टैक्स छूट और स्थानीय कस्टडी सेवाओं को बढ़ावा देने की आवश्यकता बताई जा रही है।
कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए भी जरूरी है कि क्रिप्टो कस्टडी भारत में हो, ताकि मनी लॉन्ड्रिंग, साइबर धोखाधड़ी और आतंकी फंडिंग जैसे मामलों की जांच में उन्हें आसानी हो। विदेशी प्लेटफॉर्म्स पर रखी गई संपत्तियों तक पहुंचना अक्सर मुश्किल हो जाता है, जिससे जांच में देरी होती है।
इसलिए भारत में एक सुरक्षित और कानूनी क्रिप्टो ढांचे की आवश्यकता है, जो उपभोक्ताओं को सुरक्षा प्रदान करे और देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था को मजबूती दे। यह कदम सिर्फ निवेशकों के हित में नहीं, बल्कि राष्ट्र की सुरक्षा और विकास के लिए भी आवश्यक है।