
नई दिल्ली।
AIFACS की गैलरी ‘बी’ में शनिवार, 12 अप्रैल 2025 से कलाकार आशीमा मेहरोत्रा की एकल चित्रकला प्रदर्शनी “मध्यमा – आत्मा की एक यात्रा” शुरू हुई, जो कला प्रेमियों को आत्मा की गहराइयों में झाँकने का आमंत्रण देती है। इस प्रदर्शनी का उद्घाटन संस्कृति मंत्रालय के सचिव अरुणीश चावला तथा दक्षिण अफ्रीका के उच्चायुक्त अनिल सूकलाल और उनकी पत्नी ने किया। कार्यक्रम में AIFACS के अध्यक्ष बिमल बिहारी दास, रेलवे बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारी हितेंद्र मल्होत्रा, IRFC के सीएमडी मनोज कुमार दुबे, और संस्कृति विशेषज्ञ नीरजा सरीन विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।
‘मध्यमा’— मौन से जन्मी अभिव्यक्ति
प्रदर्शनी का शीर्षक ‘मध्यमा’ वैदिक दर्शन से प्रेरित है, जो उस सूक्ष्म संवाद को दर्शाता है जो किसी भी रचनात्मक प्रक्रिया की शुरुआत में हमारे भीतर मौन रूप से घटित होता है। आशीमा की कलाकृतियाँ इसी मौन की अभिव्यक्तियाँ हैं—हर चित्र एक मन:स्थिति, एक अनुभव, एक प्रश्न और कभी-कभी एक उत्तर को उजागर करता है।

प्रदर्शनी में किसी एक विषयवस्तु की सीमाएँ नहीं हैं, बल्कि यह भावनाओं और अनुभूतियों की विविधता को दर्शाती है। चित्रों में आत्मसंवाद, वितृष्णा, आध्यात्मिकता और नगरीय अनुभवों का समावेश दिखाई देता है।
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प्रमुख कलाकृतियाँ और उनकी आत्मा
प्रदर्शनी में दर्शकों की विशेष रुचि इन कृतियों ने बटोरी:
- ‘Gaze’ (2025) – एक आत्मनिरिक्षण की शक्ति को दर्शाने वाला चित्र, जो दर्शकों से सीधे संवाद करता है।
- ‘NEELVARNA’ (2021) और ‘NEELVARNA 2.0’ (2020) – नीले रंगों के माध्यम से गहराई, मौन और आंतरिक शांति का अनुभव कराते चित्र।
- ‘HOLY CITY’ (2022) – एक पवित्र नगरी की छवि, जहाँ अध्यात्म और नगरीय जीवन का संतुलन नज़र आता है।
- ‘Vivhatsa’ (2025) – वितृष्णा जैसे जटिल भाव को एक गहन और संवेदनशील दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने वाली रचना।
आशीमा मेहरोत्रा एक प्रशासनिक सेवा अधिकारी होने के साथ-साथ एक संवेदनशील और आत्मविश्लेषी कलाकार भी हैं। पाँच वर्ष की आयु में चित्रकला की शुरुआत करने वाली आशीमा ने अपने भाई की असमय मृत्यु के बाद 2019 में पुनः कला की ओर रुख किया। उनकी पहली एकल प्रदर्शनी जहाँगीर आर्ट गैलरी, मुंबई में आयोजित हुई, जिसे देश-विदेश में सराहना मिली। एक अंतरराष्ट्रीय पहचान उन्हें तब मिली जब न्यूयॉर्क आर्ट प्रतियोगिता में उनकी कृति को चौथा स्थान मिला।
“मध्यमा – आत्मा की एक यात्रा” केवल एक कला प्रदर्शनी नहीं, बल्कि एक साधना है—एक ऐसी अनुभूति जिसमें दर्शक अपने भीतर झाँकने को प्रेरित होता है। यह प्रदर्शनी न केवल कलात्मक स्तर पर समृद्ध है, बल्कि आत्मचिंतन और भीतर के मौन को पहचानने का माध्यम भी बनती है।