जेपी सेनानी सम्मेलन में उठी मांग – आपातकाल पीड़ितों को मिले समान पेंशन और सम्मान, लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नाम पर बने अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय

नई दिल्ली, 26 जून 2025 आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर संपूर्ण क्रांति राष्ट्रीय मंच और लोकनायक जयप्रकाश अंतरराष्ट्रीय अध्ययन विकास केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में आज संविधान क्लब में जेपी सेनानी सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस अवसर पर देशभर से लोकतंत्र सेनानी जुटे और आपातकाल की विभीषिका को याद करते हुए वर्तमान संदर्भों में लोकतंत्र की चुनौतियों पर संवाद किया गया। कार्यक्रम में आपातकाल के दौरान जेल गए लोकतंत्र सेनानियों को समान पेंशन एवं सम्मान की मांग पर प्रस्ताव पारित किया गया। इसके साथ ही लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नाम पर एक अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय की स्थापना की मांग भी प्रमुखता से उठी।

कार्यक्रम में प्रमुख रूप से उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों में सत्यनारायण जटिया, विजय गोयल, सूरज मंडल, सूर्याकांत केलकर, सुनील देवधर, अंशुमान जोशी, सुधांशु रंजन और सुधाकर सिंह के अलावा विभिन्न राज्यों से आए लोकतंत्र सेनानी और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि शामिल रहे। मुख्य वक्ताओं के विचार: सत्यनारायण जटिया (पूर्व केंद्रीय मंत्री) ने अपने उद्बोधन में जयप्रकाश नारायण, नानाजी देशमुख और अन्य लोकतंत्र सेनानियों को “लोकतंत्र के अमर दीप” बताते हुए कहा, “आपातकाल के दौर में प्रतिरोध का सूर्य अस्थायी रूप से ढका गया था, लेकिन जनबल के बलिदान ने उसे और प्रखर बना दिया। जेपी का ‘सिंहासन खाली करो, जनता आती है’ का उद्घोष सिर्फ एक नारा नहीं, तानाशाही के विरुद्ध जनशक्ति का ऐतिहासिक आह्वान था।

” सुनील देवधर (भाजपा नेता, आंध्र प्रदेश प्रभारी) ने कहा, “मैं उस वक्त सिर्फ 10 वर्ष का था, लेकिन मेरे पिता पत्रकार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य थे। हमारे पुणे स्थित घर का तहखाना उस वक्त भूमिगत गतिविधियों का केंद्र बना। ऐसे हजारों गुमनाम योद्धा और उनके परिवार, खासकर महिलाएं, जिनके पति जेल गए, सम्मान की हकदार हैं। कई राज्यों ने पेंशन शुरू की है, बाकी राज्यों को भी इसका पालन करना चाहिए।” उन्होंने यह भी जोड़ा, “आपातकाल सिर्फ एक राजनीतिक संकट नहीं था, यह लोकतंत्र का अपहरण था। अनुच्छेद 352 और 19 को निलंबित कर नागरिक अधिकार छीने गए।

MISA जैसे काले कानूनों के तहत हजारों को बिना मुकदमा जेल में डाला गया। ये कुर्बानियां भूलाई नहीं जानी चाहिए।” विजय गोयल (पूर्व केंद्रीय मंत्री) ने कहा, “आपातकाल के वक्त हम दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्र आंदोलन चला रहे थे। अटल बिहारी वाजपेयी, जयप्रकाश नारायण, चारण सिंह सहित देशभर के नेताओं को रातों-रात जेल में डाल दिया गया। हम अंडरग्राउंड हो गए और साइकिल पर स्टेंसिल से पर्चे छापकर बांटते थे। वह दौर वास्तव में दूसरी स्वतंत्रता संग्राम की तरह था।” उन्होंने आगे कहा, “आज जब हम संविधान दिवस मनाते हैं, हमें संकल्प लेना चाहिए कि कभी भी किसी तानाशाही प्रवृत्ति को लोकतंत्र पर हावी नहीं होने देंगे। हम सत्ता में रहते हुए भी यह याद रखते हैं कि लोकतंत्र सर्वोपरि है।”

सूर्याकांत केलकर (संयोजक, भारत रक्षा मंच) ने कहा, “आपातकाल में जेल गए हज़ारों सेनानी आज भी हाशिए पर हैं। यह विडंबना है कि जिन्होंने लोकतंत्र को बचाया, वे आज सामाजिक और आर्थिक रूप से उपेक्षित हैं। अब समय है कि राष्ट्र उनके योगदान को औपचारिक मान्यता दे और उनकी गरिमा को बहाल करे।”

सूरज मंडल (पूर्व सांसद) ने कहा, “आजादी के बाद देश को जो संविधान मिला, उसे आपातकाल में कुचलने की कोशिश की गई थी। लेकिन देश की जनता ने जिस तरह से प्रतिरोध किया, वह इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा। लोकतंत्र सेनानियों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान और अधिकार मिलना चाहिए।” सुधांशु रंजन (वरिष्ठ पत्रकार) ने आपातकाल की पृष्ठभूमि को रेखांकित करते हुए कहा, “यह इतिहास का वह काला अध्याय था जिसमें प्रेस, न्यायपालिका और संसद की स्वतंत्रता को कुचल दिया गया। अब यह ज़रूरी है कि नई पीढ़ी को इसके बारे में पूरी जानकारी हो और वे सतर्क रहें।”

अंशुमान जोशी ने कहा, “देश में संविधान को बचाने के लिए जिन लोगों ने अपने करियर, परिवार और स्वतंत्रता को दांव पर लगा दिया, वे आज भी अनदेखे हैं। उन्हें आर्थिक सहायता और सामाजिक मान्यता मिलनी ही चाहिए।” समापन भाषण उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य सुधाकर सिंह (घोसी, मऊ) द्वारा दिया गया, जिन्होंने लोकतंत्र की रक्षा के लिए सतत संघर्ष करने वालों को सलाम करते हुए कहा कि उनकी कुर्बानी और साहस को इतिहास में उचित स्थान मिलना चाहिए।

कार्यक्रम के अंत में केंद्र सरकार से ये मुख्य मांगे की गईं: 1. सभी राज्यों में आपातकाल पीड़ित लोकतंत्र सेनानियों को समान पेंशन योजना के अंतर्गत लाया जाए। 2. लोकनायक जयप्रकाश नारायण के योगदान को स्थायी रूप से संरक्षित करने हेतु उनके नाम पर अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय की स्थापना की जाए। 3. 25 जून को ‘लोकतंत्र रक्षा दिवस’ के रूप में आधिकारिक मान्यता दी जाए।

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