
दिल्ली विश्वविद्यालय में ‘कर्तव्यम’ कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संविधान के 75 वर्ष पूरे होने पर कहा कि संवैधानिक पद कोई अलंकरण नहीं, बल्कि जिम्मेदारी का प्रतीक हैं। उन्होंने जोर दिया कि लोकतंत्र में सबसे बड़ी शक्ति जनता है, न कि कोई संस्थान या पद।
संसद से ऊपर कोई नहीं, संविधान का संरक्षक है जन प्रतिनिधि
उपराष्ट्रपति ने स्पष्ट किया कि संविधान में संसद से ऊपर किसी संस्थान की कल्पना नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि “हम भारत के लोग” ही लोकतंत्र की असली शक्ति हैं, जो अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से संविधान को जीवन देते हैं और उन्हें जवाबदेह भी ठहराते हैं।
नागरिक ही लोकतंत्र की आत्मा, केवल सरकार से शासन नहीं चलता
धनखड़ ने कहा कि लोकतंत्र केवल सरकार चलाने का माध्यम नहीं, बल्कि एक संस्कृति, एक आदर्श है। इसमें हर नागरिक की भूमिका जरूरी है – लोकतंत्र जनता की भागीदारी से ही संपूर्ण होता है, और सरकार सिर्फ एक मंच देती है, उस पर गोल नागरिकों को ही करना होता है।
विमर्श की गुणवत्ता से तय होता है लोकतंत्र का स्वास्थ्य
उपराष्ट्रपति ने कहा कि विचारों का आदान-प्रदान और बहस लोकतंत्र की जीवनरेखा हैं. यदि अभिव्यक्ति पर नियंत्रण हो या उसमें अहंकार हो, तो लोकतंत्र कमजोर हो जाता है। वाद-विवाद का सम्मान और भिन्न मतों को स्वीकार करना जरूरी है।
सही बात कहने से न डरें, नहीं तो कमजोर होंगे – उपराष्ट्रपति
धनखड़ ने युवाओं से कहा कि सही समय पर, सही मंच पर, सही बात कहने की हिम्मत होनी चाहिए, वरना सकारात्मक शक्तियों को क्षति होगी। उन्होंने कहा कि राष्ट्र व्यक्ति बनाते हैं, उद्योगपति नहीं, और हर व्यक्ति में परमाणविक शक्ति होती है, बस उसका एहसास होना चाहिए।
युवाओं से राष्ट्रहित में सोचने का आह्वान
उपराष्ट्रपति ने युवाओं से कहा कि वह दलगत राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में सोचें, क्योंकि भारत अब एक वैश्विक शक्ति बनने की राह पर है, और इसमें युवाओं की भूमिका निर्णायक है।
इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश सिंह सहित कई गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।