कड़े टैक्स प्रावधानों ने निवेशकों को घरेलू प्लेटफ़ॉर्म छोड़कर विदेशी एक्सचेंजों की ओर मोड़ा
नई दिल्ली:
भारत की क्रिप्टो नीति अब एक चौराहे पर खड़ी है। एक ओर पुराने कर प्रावधान हैं जो निवेश को सीमित कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर नए वैश्विक फ्रेमवर्क हैं जो पारदर्शिता और सहयोग का नया युग ला सकते हैं।
हालांकि, अब कई अध्ययनों से साबित हो चुका है कि इन टैक्स दरों ने मुख्य रूप से घरेलू उपयोगकर्ताओं को ऑफशोर एक्सचेंजों की ओर धकेल दिया। चेनएलिसिस की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया में क्रिप्टो-एसेट अपनाने की सबसे ऊँची दर वाला देश है। इसका अर्थ यह हुआ कि पहला उद्देश्य — यानी कड़े कर प्रावधानों के ज़रिए क्रिप्टो ट्रेडिंग को हतोत्साहित करना — असफल रहा, क्योंकि उपयोगकर्ताओं ने व्यापार जारी रखा, बस घरेलू प्लेटफ़ॉर्म छोड़कर विदेशी प्लेटफ़ॉर्म पर चले गए। स्थिति और बिगड़ गई क्योंकि दूसरा उद्देश्य — यानी 1% टीडीएस के ज़रिए लेन-देन को ट्रैक करना — भी पूरा नहीं हो सका। अधिकांश ऑफशोर एक्सचेंजों ने यह दलील दी कि चूंकि उनका भारत में कोई कर योग्य अस्तित्व नहीं है, इसलिए वे टीडीएस एकत्र करने या लेन-देन की रिपोर्ट करने के लिए बाध्य नहीं हैं। नतीजतन, भारत की कर नीति अपने दोनों घोषित उद्देश्यों को पूरा करने में विफल रही।
वर्ष 2023 में क्रिप्टो-एसेट सेवा प्रदाताओं (Crypto-Asset Service Providers) को मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (PMLA) के दायरे में लाया गया। इस प्रावधान के तहत सभी वर्चुअल एसेट सेवा प्रदाताओं (VASPs) — जिनमें क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज भी शामिल हैं — को वित्त मंत्रालय के अधीन वित्तीय खुफिया इकाई (FIU) में पंजीकरण कराना अनिवार्य किया गया। अब इन प्रदाताओं को संदिग्ध लेन-देन की रिपोर्टिंग, अभिलेखों का संधारण, और व्यापक एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग कार्यक्रमों की स्थापना जैसी गतिविधि-आधारित जिम्मेदारियों का पालन करना होता है। इस प्रकार, सरकार ने PMLA के तहत क्रिप्टो-एसेट्स को शामिल करते हुए और साथ ही 1% टीडीएस बनाए रखते हुए, एक ही उद्देश्य (क्रिप्टो लेन-देन की निगरानी) को दो समानांतर नीतिगत साधनों से साधने की कोशिश की।
हाल ही में यह रिपोर्ट किया गया है कि भारत, टैक्स चोरी को रोकने और ऑफशोर क्रिप्टो-एसेट्स पर निगरानी बढ़ाने के लिए आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) के क्रिप्टो-एसेट रिपोर्टिंग फ्रेमवर्क (CARF) को लागू करेगा। इस व्यवस्था के तहत विभिन्न देशों में VASP को रिपोर्टिंग संस्थाओं के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा, जिन्हें संबंधित जानकारी एकत्र कर अपने देश की कर प्राधिकरण को सौंपनी होगी। इसके बाद यह जानकारी सदस्य देशों के कर प्राधिकरणों के बीच साझा की जाएगी। इस अंतरराष्ट्रीय डेटा-साझाकरण से वैश्विक स्तर पर क्रिप्टो-एसेट होल्डिंग्स और लेन-देन की निगरानी संभव होगी, जिससे टैक्स चोरी पर अंकुश लगाया जा सकेगा।
यदि लक्ष्य क्रिप्टो लेन-देन को ट्रैक करना है, तो नीतिगत दृष्टि से प्रगति अब अधिक प्रभावी साधनों — जैसे PMLA और CARF — की दिशा में हो चुकी है। इनकी तुलना में 1% टीडीएस अब न केवल अप्रासंगिक बल्कि प्रतिकूल भी सिद्ध हो रहा है। इसने भारतीय उपयोगकर्ताओं को विदेशी, अक्सर अनियमित एक्सचेंजों की ओर धकेल दिया है, जो देश के कानून के अधिकार क्षेत्र से बाहर संचालित होते हैं। इसलिए अब समय आ गया है कि टीडीएस ढांचे पर पुनर्विचार किया जाए।
यदि दर को प्रतिभूति लेन-देन कर (Securities Transaction Tax) के बराबर कम किया जाए, तो इससे सरकारी कर राजस्व भी बना रहेगा और विदेशी प्लेटफ़ॉर्मों की ओर पूंजी प्रवाह (capital flight) भी कम होगा। साथ ही, PMLA और CARF प्रावधानों का संयुक्त कार्यान्वयन यह सुनिश्चित करेगा कि लेन-देन की निगरानी कर-संग्रह से अलग की जा सके, जिससे VASP अधिक कुशलता से काम कर सकें और कारोबार खोने के भय के बिना उद्योग आगे बढ़ सके।





