क्रिप्टो माइनिंग: क्या भारत डिजिटल क्रांति का बड़ा मौका गंवा रहा है?

नई दिल्ली, 28 मार्च 2025

क्रिप्टो माइनिंग वह प्रक्रिया है जिसका उपयोग बिटकॉइन और कई अन्य क्रिप्टो संपत्तियां नए टोकन बनाने और लेनदेन को सत्यापित करने के लिए करती हैं। यह पूरी तरह विकेंद्रीकृत (Decentralized) नेटवर्क होता है, जिसमें विशेष कंप्यूटरों का उपयोग किया जाता है। ये मशीनें जटिल गणनाएँ करती हैं, जिसे आमतौर पर क्रिप्टोग्राफ़िक पहेलियाँ हल करना कहा जाता है, ताकि हर लेनदेन की पुष्टि हो सके और इसे ब्लॉकचेन में सुरक्षित रूप से जोड़ा जा सके। ब्लॉकचेन एक डिजिटल खाता बही की तरह काम करता है, जिसमें हर लेनदेन दर्ज होता है। इस प्रक्रिया में योगदान देने वाले माइनर्स को नए टोकन के रूप में इनाम दिया जाता है, जिससे न केवल नेटवर्क सुरक्षित रहता है, बल्कि माइनर्स को भी इसे लगातार सक्रिय बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

दुनिया के कई देश पहले ही इस क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ चुके हैं। अमेरिका, कनाडा और कजाकिस्तान ने अपने ऊर्जा संसाधनों, अनुकूल नीतियों और तकनीकी बुनियादी ढांचे का लाभ उठाकर क्रिप्टो माइनिंग को बड़े स्तर पर अपनाया है। अमेरिका फिलहाल वैश्विक बिटकॉइन माइनिंग का 37.8% हिस्सा संभाल रहा है, जो वहां की सस्ती ऊर्जा और उदार बाजार नीतियों का नतीजा है। वहीं, भूटान जैसे छोटे देशों ने भी अपने जलविद्युत संसाधनों का उपयोग करके संप्रभु माइनिंग संचालन विकसित कर लिया है। टेक्सास में तो बिटकॉइन माइनिंग न केवल आर्थिक लाभ पहुंचा रही है, बल्कि ऊर्जा ग्रिड को स्थिर करने, गैस-आधारित बिजली संयंत्रों पर निर्भरता कम करने और उपभोक्ताओं के लिए बिजली लागत को कम करने में भी मदद कर रही है।

इसके विपरीत, भारत अब भी इस उभरते उद्योग में पीछे छूटा हुआ है। देश में 11% वैश्विक आईटी कार्यबल है और हर साल 15 लाख से अधिक इंजीनियरिंग स्नातक तैयार होते हैं, फिर भी भारत की हिस्सेदारी वैश्विक क्रिप्टो माइनिंग में 1% से भी कम है। यह स्थिति इसलिए नहीं है क्योंकि भारत में क्रिप्टो माइनिंग प्रतिबंधित है। वास्तव में, इस पर कोई स्पष्ट रोक नहीं है, लेकिन नीतिगत अस्थिरता, भारी कराधान और सहयोगी ढांचे की कमी इस क्षेत्र के विकास में बड़ी बाधा बनी हुई है। 2022 में क्रिप्टो आय पर 30% कर और लेनदेन पर 1% टीडीएस लागू करने के बाद कई स्टार्टअप भारत से बाहर निकलकर दुबई, सिंगापुर और एस्टोनिया जैसी जगहों पर बस गए, जहां नियामक नीतियां अधिक अनुकूल हैं।

हालांकि, भारत के लिए क्रिप्टो और उससे जुड़ी टेक्नोलॉजी को नजरअंदाज करना नुकसानदायक हो सकता है। NASSCOM और Hashed Emergent की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, यदि भारत इस क्षेत्र को सही ढंग से विकसित करता है, तो 2030 तक क्रिप्टोटेक उद्योग 8 लाख से अधिक नौकरियां उत्पन्न कर सकता है और लगभग 184 अरब डॉलर का आर्थिक योगदान दे सकता है। ऐसे समय में जब देश में युवा बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बनी हुई है, यह अवसर भारत के लिए एक बड़ा बदलाव ला सकता है।

क्रिप्टो माइनिंग के लिए सबसे बड़ी जरूरत ऊर्जा है, और यह क्षेत्र भारत के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर हो सकता है। माइनिंग के लिए भारी मात्रा में बिजली की आवश्यकता होती है, लेकिन अगर इसे भारत के बढ़ते नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों से जोड़ा जाए, तो यह ऊर्जा स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। भारत 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता विकसित करने का लक्ष्य रखता है, और इस अतिरिक्त ऊर्जा का उपयोग क्रिप्टो माइनिंग के लिए किया जा सकता है। खासकर उन राज्यों में, जहां सौर और पवन ऊर्जा की अधिकता है, माइनिंग को अपनाने से न केवल अतिरिक्त ऊर्जा का सही उपयोग होगा, बल्कि यह राज्यों के लिए राजस्व का एक नया स्रोत भी बन सकता है। कर्नाटक, तमिलनाडु और गुजरात जैसे राज्यों के पास पर्याप्त अक्षय ऊर्जा संसाधन हैं, जिन्हें क्रिप्टो माइनिंग के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे ऊर्जा ग्रिड को स्थिर करने में मदद मिलेगी और इन राज्यों को अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होगा, जिससे वे विकास योजनाओं में अधिक निवेश कर सकेंगे।

दुनिया के कुछ देशों ने इस दिशा में बड़ी सफलता हासिल की है। नॉर्वे ने अपने बिटकॉइन माइनिंग उद्योग को पूरी तरह जलविद्युत से संचालित किया है, जिससे न केवल कार्बन उत्सर्जन में कमी आई है, बल्कि राजस्व भी बढ़ा है। भूटान ने 2019 से अब तक 12,000 बिटकॉइन माइन किए हैं और 2025 तक अपनी माइनिंग क्षमता को 600 मेगावाट तक बढ़ाने की योजना बनाई है। एल साल्वाडोर ने अपनी ज्वालामुखीय ऊर्जा का उपयोग करके “बिटकॉइन सिटी” विकसित करने का महत्वाकांक्षी कदम उठाया है। इन उदाहरणों से साफ है कि क्रिप्टो माइनिंग सिर्फ डिजिटल संपत्ति उत्पन्न करने का जरिया नहीं है, बल्कि यह बुनियादी ढांचे में निवेश, रोजगार सृजन और आर्थिक विविधता लाने का भी एक प्रभावी माध्यम बन सकता है।

भारत के कुछ राज्यों में पर्याप्त बिजली उत्पादन क्षमता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। ये राज्य, बिना केंद्र सरकार की स्वीकृति का इंतजार किए, छोटे स्तर पर क्रिप्टो माइनिंग को अपनाने की पहल कर सकते हैं। इससे इस उद्योग के आर्थिक और तकनीकी प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने का मौका मिलेगा और भविष्य में अधिक अनुकूल नीतियों की दिशा में रास्ता खुल सकता है।

क्रिप्टो माइनिंग सिर्फ एक सट्टा बाजार नहीं है, बल्कि यह ऊर्जा सुरक्षा, तकनीकी आत्मनिर्भरता और वित्तीय समावेशन का एक नया रास्ता खोल सकता है। भारत ने अब तक इस अवसर का पूरी तरह से लाभ नहीं उठाया है, लेकिन इसके पास विशाल तकनीकी प्रतिभा, बढ़ते नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन और मजबूत लोकतांत्रिक संस्थाएं हैं, जो इसे वैश्विक दक्षिण में डिजिटल क्रांति का नेतृत्व करने की क्षमता प्रदान करती हैं। सवाल यह नहीं है कि भारत ने यह अवसर खो दिया है या नहीं, बल्कि यह है कि क्या भारत समय रहते निर्णायक कदम उठाएगा या नहीं। यदि देश अपने नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों का सही उपयोग करता है और नवाचार को बढ़ावा देने वाली नीतियां अपनाता है, तो भारत अभी भी वैश्विक क्रिप्टो माइनिंग क्षेत्र में अपनी जगह बना सकता है। अब जरूरत है सही दिशा में कदम बढ़ाने की।

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