
भारत में क्रिप्टोकरेंसी बाजार तेजी से फल-फूल रहा है, लेकिन इस क्षेत्र में नियमन की स्पष्टता का अभाव कानून प्रवर्तन एजेंसियों (LEAs) के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। चेनालिसिस 2024 जियोग्राफी ऑफ क्रिप्टो रिपोर्ट के अनुसार, भारत क्रिप्टो अपनाने में वैश्विक स्तर पर अग्रणी है और डिजिटल एसेट्स व ब्लॉकचेन स्टार्टअप्स के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है। हालांकि, इस क्षेत्र में ठोस नियामक ढांचे की कमी के कारण अवैध गतिविधियों की निगरानी करना कठिन हो गया है। इससे न केवल साइबर अपराधों में बढ़ोतरी हो रही है, बल्कि वैध निवेशक भी कानूनी अनिश्चितता के कारण असमंजस में हैं।
बढ़ते साइबर अपराध और सीमित कार्रवाई
पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक स्तर पर क्रिप्टो से जुड़े अपराधों में तेजी आई है। चेनालिसिस की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में अवैध क्रिप्टो लेन-देन का मूल्य 46.1 अरब अमेरिकी डॉलर था, जो 2024 में बढ़कर 51 अरब डॉलर हो गया। भारत में यह समस्या और गंभीर है क्योंकि यहां क्रिप्टो उपयोगकर्ताओं की संख्या अधिक है, लेकिन नियामक निगरानी बेहद सीमित है।
मार्च 2023 में धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत क्रिप्टो व्यवसायों को शामिल करना एक सकारात्मक कदम था, लेकिन अब भी कई चुनौतियां बनी हुई हैं। संदिग्ध लेन-देन को ट्रैक करना और अपराधियों तक पहुंचना मुश्किल साबित हो रहा है, खासकर जब अपराधी अलग-अलग देशों या राज्यों में सक्रिय होते हैं।
राज्यों के बीच असमानता और जांच में बाधाएं
भारत की संघीय शासन प्रणाली भी इस समस्या को जटिल बना रही है। देश में कानून-व्यवस्था राज्य सरकारों के अधीन है, जिससे राज्यों के बीच साइबर अपराध जांच की क्षमता अलग-अलग है। कुछ राज्यों में आधुनिक साइबर फॉरेंसिक तकनीकों की उपलब्धता है, जबकि अन्य राज्यों में संसाधनों और विशेषज्ञता की कमी है। अपराधी इसी असमानता का फायदा उठाकर एक राज्य में अपराध करने के बाद ऐसे राज्यों में चले जाते हैं, जहां कानून प्रवर्तन अपेक्षाकृत कमजोर है।

वैध क्रिप्टो कारोबार भी प्रभावित
स्पष्ट नियमों की कमी के कारण न केवल अपराधियों को फायदा मिल रहा है, बल्कि वैध क्रिप्टो व्यवसाय भी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। कई स्टार्टअप्स और एक्सचेंजों के बैंक खाते फ्रीज कर दिए जाते हैं, या वे लंबी कानूनी जांच के दायरे में आ जाते हैं क्योंकि स्थानीय अधिकारियों के पास ठोस दिशा-निर्देशों की कमी है।
इसके विपरीत, सरकार का ध्यान मुख्य रूप से राजस्व संग्रह पर केंद्रित दिखता है। क्रिप्टो लेन-देन पर 30% टैक्स और 1% टीडीएस लागू होने के बाद कई भारतीय निवेशक विदेशी प्लेटफॉर्म की ओर रुख कर चुके हैं, जिससे क्रॉस-बॉर्डर क्रिप्टो अपराधों की निगरानी और मुश्किल हो गई है।
अन्य देशों की तुलना में भारत की स्थिति
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई देशों ने इस क्षेत्र में स्पष्ट नियम बनाए हैं। यूरोपीय संघ (EU) ने मार्केट्स इन क्रिप्टो-एसेट्स (MiCA) कानून लागू किया है, जिससे उपभोक्ताओं की सुरक्षा और मनी लॉन्ड्रिंग पर नियंत्रण सुनिश्चित हुआ है। अमेरिका में SEC और CFTC जैसी संस्थाएं क्रिप्टो बाजार को नियंत्रित कर रही हैं। ब्राजील और दुबई जैसे देशों ने भी समर्पित नियामक निकाय स्थापित किए हैं। इसके विपरीत, भारत में अब तक किसी विशेष एजेंसी को वर्चुअल डिजिटल एसेट्स (VDA) की निगरानी की जिम्मेदारी नहीं दी गई है।
क्रिप्टो तकनीक के बदलते आयाम और नई चुनौतियां
क्रिप्टोकरेंसी और ब्लॉकचेन तकनीक में लगातार हो रहे बदलाव कानून प्रवर्तन के लिए नई चुनौतियां पेश कर रहे हैं। डिसेंट्रलाइज्ड फाइनेंस (DeFi), स्टेबलकॉइन्स और NFT जैसी तकनीकों ने पारंपरिक वित्तीय निगरानी को मुश्किल बना दिया है। 2022 में क्रिप्टो चोरी के 80% से अधिक मामले DeFi से जुड़े थे। भारत में ब्लॉकचेन फॉरेंसिक टूल्स और साइबर क्राइम जांच की सीमित क्षमताओं के कारण अपराधी “चेन-हॉपिंग” और अन्य गुप्त तकनीकों का उपयोग कर बच निकलते हैं।
भारत में क्रिप्टो अपराध: प्रमुख मामले
भारत में कई बड़े क्रिप्टो अपराध सामने आ चुके हैं।
- 2022 में वज़ीरएक्स हैक: इस हमले में 230 मिलियन डॉलर से अधिक की चोरी हुई थी, जिसमें साइबर अपराधियों ने Private Keys से समझौता कर धन चुरा लिया।
- अवैध लोन ऐप घोटाला: प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने 19 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की, लेकिन इस तरह के मामलों में अक्सर कार्रवाई धीमी रहती है।
क्या किया जा सकता है?
इन बढ़ती चुनौतियों से निपटने के लिए भारत को एक मजबूत और स्पष्ट नियामक ढांचे की जरूरत है।
- राष्ट्रीय नोडल एजेंसी की स्थापना: केंद्र सरकार को क्रिप्टो से जुड़े मामलों के लिए एक समर्पित एजेंसी बनानी चाहिए जो राज्यों के लिए समान दिशानिर्देश तैयार करे।
- सूचना साझा करने की प्रक्रिया में सुधार: राज्यों के बीच डेटा एक्सचेंज को मजबूत करना जरूरी है ताकि साइबर अपराधों पर त्वरित और प्रभावी कार्रवाई हो सके।
- ब्लॉकचेन फॉरेंसिक टूल्स में निवेश: कानून प्रवर्तन एजेंसियों को आधुनिक तकनीकों से लैस करना जरूरी है ताकि वे तेजी से evolving क्रिप्टो अपराधों का मुकाबला कर सकें।
- पब्लिक-प्राइवेट साझेदारी: वैध क्रिप्टो व्यवसायों को स्पष्ट नियमों के तहत कार्य करने का अवसर देना चाहिए ताकि नवाचार प्रभावित हुए बिना नियमन को मजबूत किया जा सके।
यदि भारत अपनी बढ़ती क्रिप्टो अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखना चाहता है और डिजिटल संपत्तियों में निवेशकों का भरोसा बनाए रखना चाहता है, तो उसे जल्द से जल्द एक प्रभावी नियामक नीति तैयार करनी होगी। इससे अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगेगा और नवाचार को भी प्रोत्साहन मिलेगा। अब समय आ गया है कि सरकार क्रिप्टो नियमन को प्राथमिकता दे, ताकि यह क्षेत्र सुरक्षित, पारदर्शी और दीर्घकालिक रूप से स्थिर रह सके।
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