वैश्विक क्रिप्टो नियमों में तेजी, लेकिन खामियां बरकरार—भारत की अनुपस्थिति बनी सबसे बड़ी चुनौती

दुनिया क्रिप्टो रेगुलेशन की दिशा में आगे बढ़ रही है, पर असमान प्रवर्तन और भारत के स्पष्ट ढांचे की कमी वैश्विक चिंताओं को और गहरा कर रही है।

नई दिल्ली, 22 नवंबर 2025

बीते कुछ महीनों में क्रिप्टो विनियमन को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेज हलचल देखने को मिली है। फाइनेंशियल स्टेबिलिटी बोर्ड (FSB) और IOSCO की नई रिपोर्टों से साफ़ है कि वैश्विक क्रिप्टो रेगुलेशन अब रफ्तार पकड़ चुका है, मगर दिशा अभी भी बिखरी हुई है। कई देशों में नियम मौजूद हैं लेकिन सही तरीके से लागू नहीं हो रहे। वहीं जहां नियम नहीं हैं, वहां कंपनियों ने रेगुलेटरी आर्बिट्रेज़ का रास्ता पकड़ लिया है। ऐसे दौर में भारत द्वारा अभी तक अंतिम नियामकीय ढांचा पेश न कर पाना, एक बड़ा खालीपन बन गया है।

FSB की अक्टूबर पीयर-रिव्यू रिपोर्ट बताती है कि सर्वे में शामिल 29 देशों में मात्र 11 ने पूर्ण क्रिप्टो रेगुलेशन लागू किए हैं। स्टेबलकॉइन की स्थिति और कमजोर है—सिर्फ 5 देशों में ही इसका समग्र ढांचा मौजूद है, जबकि बाजार का आकार 290 अरब डॉलर पार कर चुका है और तेज गति से बढ़ रहा है। FSB ने भारत को उन छह देशों की सूची में रखा है जिनके पास कोई ढांचा ही नहीं है—चीन, कज़ाकिस्तान, लेबनान, मेक्सिको और सऊदी अरब के साथ।
IOSCO की समीक्षा में भारत का नाम न होना और भी गंभीर है, खासकर तब जब देश में 10 करोड़ से अधिक रिटेल क्रिप्टो उपयोगकर्ता मौजूद हैं।

जहां नियम लागू हैं, वहां भी एकरूपता की कमी है। ऑस्ट्रेलिया, हांगकांग, सिंगापुर, बरमूडा और कनाडा जैसे देशों ने लाइसेंसिंग और प्रवर्तन दोनों में तेजी दिखाई है—Binance, XT.com और CoinEx के खिलाफ हाल की कार्रवाई इस सक्रियता का उदाहरण है। वहीं भारत का दायरा अब भी PMLA तक सीमित है; कस्टडी मानदंड, उपभोक्ता संरक्षण, मार्केट सर्विलांस और लाइसेंसिंग जैसे आवश्यक पहलुओं पर स्पष्ट ढांचा नहीं है।

इसी असमानता से रेगुलेटरी आर्बिट्रेज़ पनप रहा है। भारत में बड़ी संख्या में विदेशी प्लेटफॉर्म बिना स्थानीय लाइसेंस के सेवाएं दे रहे हैं, जिससे निगरानी कमजोर होती है और जोखिम बढ़ते हैं।

FSB और IOSCO दोनों ने स्टेबलकॉइन के वैश्विक ढांचे को सबसे संवेदनशील जोखिम बताया है। जब किसी स्टेबलकॉइन के संचालन में शामिल साझेदार अलग-अलग नियमों के दायरे में काम करते हैं, तो अस्थिरता के समय पूरी व्यवस्था प्रभावित होती है। IOSCO ने यह भी चेताया है कि स्टेबलकॉइन जारीकर्ता अपने रिज़र्व का बड़ा हिस्सा अल्पकालिक ट्रेजरी और मनी-मार्केट फंड में रखते हैं, जिससे पारंपरिक वित्तीय बाजार और क्रिप्टो बाजार का जुड़ाव और मजबूत होता है।

सीमा-पार सहयोग का स्तर भी उम्मीद के मुताबिक नहीं है। IOSCO के मल्टीलेट्रल MMoU पर हस्ताक्षर तो लगभग सभी देशों के हैं, लेकिन वास्तविक सूचना-साझाकरण बेहद सीमित है। FSB ने स्वीकार किया है कि मानकीकृत डेटा की कमी निगरानी को कमजोर बनाती है—चाहे वह लीवरेज हो, लिक्विडिटी हो या जोखिम एकाग्रता।

FSB की स्टेजिंग व्यवस्था भी इस अंतर को स्पष्ट करती है। स्टेज-5 में शामिल देश—बहामास से लेकर जापान, सिंगापुर और यूरोपीय संघ तक—पूरी तरह लागू ढांचे के साथ आगे बढ़ चुके हैं। इसके विपरीत भारत अभी भी स्टेज-1 पर है—न कोई विधेयक, न दिशा-निर्देश और न ही समय-सीमा।

इन रिपोर्टों का मुख्य संदेश यही है कि पारदर्शी और मजबूत नियमन ही सुरक्षित तथा टिकाऊ क्रिप्टो बाजार की कुंजी है। जहां नियम स्पष्ट होते हैं, वहां जोखिम नियंत्रित रहते हैं; जहां नियम अस्पष्ट होते हैं, गतिविधियां ऑफशोर चली जाती हैं और जोखिम बढ़ते जाते हैं।

भारत के लिए सीख सीधी है—चरणबद्ध, लेकिन ठोस और व्यापक क्रिप्टो नियमन अनिवार्य है। स्पष्ट ढांचा न केवल जोखिमों को कम करेगा, बल्कि भारत को एक मजबूत डिजिटल एसेट हब के रूप में स्थापित करने का अवसर भी देगा। साथ ही यह कदम सरकार और RBI के वित्तीय स्थिरता लक्ष्यों को और मजबूती देगा।

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