भारत में डीपिन क्रांति: ब्लॉकचेन से बन रहा है ‘जनता का इंफ्रास्ट्रक्चर’

विकेंद्रीकृत नेटवर्क कैसे बदल रहे हैं ऊर्जा, कनेक्टिविटी और डिजिटल अर्थव्यवस्था का भविष्य

दुनिया तेजी से ऐसे दौर में प्रवेश कर रही है जहां बुनियादी ढांचे (Infrastructure) का स्वामित्व और संचालन अब केवल सरकारों या बड़ी कंपनियों तक सीमित नहीं रहेगा। अब आम नागरिक भी ब्लॉकचेन की मदद से इस प्रणाली का हिस्सा बन सकते हैं। यही विचार डीपिन (Decentralized Physical Infrastructure Networks) यानी विकेंद्रीकृत भौतिक नेटवर्क के केंद्र में है।

डीपिन क्या है?

डीपिन ऐसे नेटवर्क हैं जो ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग कर भौतिक बुनियादी ढांचे — जैसे चार्जिंग स्टेशन, वाई-फाई हॉटस्पॉट, स्टोरेज नेटवर्क या कंप्यूटिंग पावर — को सामुदायिक स्वामित्व में लाने का काम करते हैं। इससे न केवल पारदर्शिता बढ़ती है, बल्कि स्थानीय उद्यमिता को भी बल मिलता है।

भारत में डीपिन के सफल उदाहरण

1. डीचार्ज:
भारत में तेजी से बढ़ती ईवी मांग को देखते हुए, डीचार्ज ने एक विकेंद्रीकृत चार्जिंग नेटवर्क बनाया है, जहां व्यक्ति या छोटे व्यवसाय अपने चार्जिंग स्टेशन लगाकर ब्लॉकचेन के ज़रिए भुगतान और उपयोग का रिकॉर्ड रख सकते हैं। 2024 के अंत तक इसने 10 लाख मिनट से अधिक चार्जिंग दर्ज की और 2.5 मिलियन डॉलर की सीड फंडिंग जुटाई।

2. एथिर (Aethir):
यह प्लेटफ़ॉर्म ऐसे व्यक्तियों को जोड़ता है जिनके पास अतिरिक्त GPU है, उन कंपनियों से जिन्हें कंप्यूटिंग पावर की ज़रूरत है। एनवीडिया जैसे दिग्गजों के साथ साझेदारी कर, यह एआई ट्रेनिंग और गेमिंग को सुलभ बनाता है और आम लोगों को आय का नया स्रोत देता है।

3. डाबा नेटवर्क:
सोलाना ब्लॉकचेन पर बना यह नेटवर्क स्थानीय स्तर पर वाई-फाई हॉटस्पॉट चलाने की सुविधा देता है। व्यक्ति अपना डिवाइस जोड़कर नेटवर्क का हिस्सा बन सकते हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में भी सस्ता और तेज़ इंटरनेट पहुंचाना संभव होता है।

डीपिन के वैश्विक संकेतक

मेसारी की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 के मध्य तक डीपिन प्रोजेक्ट्स में 5 अरब डॉलर से अधिक का निवेश हुआ था और 2030 तक इसके 50 अरब डॉलर पार करने की संभावना है। विश्व आर्थिक मंच (WEF) का अनुमान है कि 2028 तक डीपिन और DePAI (Decentralized Physical AI) का संयुक्त बाजार आकार 3.5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है।

भारत के लिए अवसर

भारत में डिजिटल बुनियादी ढांचे की असमानता अभी भी एक चुनौती है। ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में इंटरनेट और ईवी चार्जिंग जैसी सुविधाओं की कमी है। डीपिन मॉडल इस अंतर को पाटने में मदद कर सकता है, क्योंकि इसमें लोग स्वयं बुनियादी ढांचे का हिस्सा बनकर उससे आय अर्जित कर सकते हैं।

सोलाना डीपिन समिट और बेंगलुरु का उभरता वेब3 इकोसिस्टम इस दिशा में भारत की तैयारी का उदाहरण हैं।

डीपिन से होने वाले प्रमुख लाभ

  • साझा स्वामित्व: संपत्तियों का नियंत्रण और लाभ समुदाय के पास रहता है।
  • पारदर्शी लेनदेन: ब्लॉकचेन आधारित भुगतान और डेटा ट्रैकिंग से धोखाधड़ी की संभावना घटती है।
  • रोज़गार और आय: नए डिजिटल नेटवर्क से माइक्रो-उद्यमिता को प्रोत्साहन मिलता है।
  • स्थानीय पूंजी निर्माण: आर्थिक मूल्य समुदाय के भीतर ही बना रहता है।

नीतिगत प्राथमिकताएं और सुरक्षा

भारत को इस मॉडल को अपनाने के लिए कुछ कदम उठाने होंगे —

  1. डीपिन पायलट प्रोजेक्ट्स के लिए नियामक सैंडबॉक्स बनाना।
  2. टोकन आधारित आय पर स्पष्ट कर नीति तय करना।
  3. सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना।
  4. ऑन-चेन गवर्नेंस और डेटा सुरक्षा के मानक मजबूत करना।

डीपिन सिर्फ एक तकनीकी नवाचार नहीं, बल्कि सामुदायिक सशक्तिकरण का प्रतीक है। यह मॉडल ऐसे भविष्य की नींव रखता है जहां बुनियादी ढांचा “लोगों द्वारा, लोगों के लिए” संचालित होगा। यदि भारत इस दिशा में स्पष्ट नीतियां और सहयोगी ढांचा अपनाता है, तो वह न केवल अपनी डिजिटल चुनौतियों को अवसरों में बदल सकता है, बल्कि आत्मनिर्भर भारत के विज़न को भी नई गति दे सकता है।

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