मरुस्थलीकरण और सूखा रोकने की रणनीति पर जोधपुर में बड़ी पहल, अरावली संरक्षण को मिली रफ्तार

जोधपुर में पर्यावरण मंत्रालय की पहल पर आयोजित कार्यशाला में सतत भूमि प्रबंधन, अरावली संरक्षण और समुदाय-आधारित समाधान बने मुख्य केंद्रबिंदु; केंद्रीय मंत्रियों भूपेंद्र यादव और गजेंद्र सिंह शेखावत ने साझा किए भारत के हरित विकास के संकल्प

17 जून 2025, जोधपुर

विश्व मरुस्थलीकरण एवं सूखा रोकथाम दिवस 2025 के अवसर पर भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE) के अधीन शुष्क वन अनुसंधान संस्थान (AFRI), जोधपुर में “मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने की रणनीति” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य शुष्क एवं अर्ध-शुष्क पारिस्थितिकी तंत्रों में सतत भूमि प्रबंधन की रणनीतियों पर चर्चा करना था।

 मरुस्थलीकरण और सूखा रोकने की रणनीति पर जोधपुर में बड़ी पहल, अरावली संरक्षण को मिली रफ्तार

मुख्य अतिथि के रूप में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेंद्र यादव ने मरुस्थलीकरण के खिलाफ भारत की लड़ाई में समुदाय-नेतृत्व वाले प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने अरावली पर्वतमाला को पुनर्जीवित करने के लिए सामूहिक जनसहभागिता का आह्वान करते हुए कहा कि भारत की बड़ी भू-भाग भूमि क्षरण की चुनौतियों का सामना कर रही है, जिसका प्रमुख कारण असंवहनीय कृषि पद्धतियां और रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग है।

श्री यादव ने इस अवसर पर ‘अमृत सरोवर’, ‘मातृ वन’ और ‘एक पेड़ मां के नाम’ जैसी पहलों को न केवल पर्यावरणीय बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने अरावली श्रृंखला के पारिस्थितिक और ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करते हुए इसे सभ्यता और विरासत का प्रतीक बताया। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि भारत 2047 तक हरित अर्थव्यवस्था की दिशा में ठोस प्रगति करेगा।

इस अवसर पर केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने भी संबोधित किया। उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर वन क्षेत्र में गिरावट के बावजूद भारत ने वन क्षेत्र बढ़ाने में उल्लेखनीय प्रगति की है। श्री शेखावत ने अरावली पर्वतमाला को थार रेगिस्तान के विस्तार को रोकने वाला एक प्राकृतिक अवरोध बताया और इसे जल संरक्षण, भूजल पुनर्भरण और जैव विविधता के संरक्षण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला क्षेत्र बताया।

कार्यशाला के दौरान विभिन्न प्रकाशनों और पहलों का विमोचन किया गया, जिनमें शामिल हैं:
  • अरावली श्रृंखला के आस-पास के जिलों पर सूचना पुस्तिका

  • हरित भारत मिशन का संशोधित दस्तावेज

  • टिकाऊ भूमि प्रबंधन (SLM) पर पुस्तक

  • राष्ट्रीय वनरोपण निगरानी प्रणाली (NAMS) का शुभारंभ

  • AFRI शीशम क्लोन के वितरण से संबंधित दस्तावेज

यह भी पढ़ें : फोर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट ने 2025–27 बैच का किया जोरदार स्वागत, 26 राज्यों से आए छात्रों ने जोड़ी नई ऊर्जा

कार्यक्रम के तकनीकी सत्रों में सतत भूमि प्रबंधन, भूमि क्षरण तटस्थता (LDN) और अरावली ग्रीन वॉल परियोजना जैसे विषयों पर विशेषज्ञों और विकास भागीदारों — UNDP, ADB, GIZ, KfW, AFD, विश्व बैंक — द्वारा प्रस्तुतियां दी गईं। अंत में, राज्यों, NGOs, वैज्ञानिक संस्थानों और नीति-निर्माताओं के बीच सहयोग को बल देते हुए समापन सत्र आयोजित किया गया, जिसमें विज्ञान आधारित और भागीदारीपूर्ण दृष्टिकोण से मरुस्थलीकरण से निपटने की प्रतिबद्धता दोहराई गई।

इस राष्ट्रीय कार्यशाला ने भारत की संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम सम्मेलन (UNCCD) के तहत प्रतिबद्धताओं को मजबूती प्रदान की और 2030 तक भूमि क्षरण तटस्थता प्राप्त करने की दिशा में हो रही प्रगति को रेखांकित किया।

इस अवसर पर वन महानिदेशक श्री सुशील कुमार अवस्थी, अपर महानिदेशक श्री ए.के. मोहंती, ICFRE की महानिदेशक श्रीमती कंचन देवी, AFRI निदेशक डॉ. तरुण कांत सहित विभिन्न राज्यों और केंद्र सरकार के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

सभी दस्तावेजों की सॉफ्ट कॉपी moef.gov.in/guidelinesdocuments पर उपलब्ध है।

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