
राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने संविधान संशोधन में न्यायपालिका की भूमिका को लेकर चर्चा की आवश्यकता जताई है। उन्होंने संसद की संप्रभुता और न्यायपालिका के अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया।
उन्होंने 2015 में पारित एक विधायी ढांचे का उल्लेख किया, जिसे राज्य विधानसभाओं ने सर्वसम्मति से मंजूरी दी थी और राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 111 के तहत अपनी स्वीकृति दी थी। धनखड़ ने स्पष्ट रूप से कहा कि किसी भी संस्था को संसद द्वारा पारित कानूनों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं।
संसद बनाम न्यायपालिका: शक्ति संतुलन पर मंथन
सभापति ने जोर देते हुए कहा कि संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो संसदीय संशोधनों की समीक्षा या अपील की अनुमति देता हो। उन्होंने सदस्यों से इस संवैधानिक व्यवस्था पर विचार करने का आह्वान किया, जो स्वतंत्रता के बाद की लोकतांत्रिक एकता का प्रतीक है।
उन्होंने कहा कि संसद और न्यायपालिका को अपनी-अपनी सीमाओं में रहकर कार्य करना चाहिए ताकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया सुचारू रूप से संचालित हो सके।
Floor Leaders के साथ बैठक का निर्णय
सभापति ने बताया कि इस मुद्दे पर नेता सदन और नेता विपक्ष के साथ विचार-विमर्श हुआ। उन्होंने इस विषय पर गहन चर्चा के लिए आज शाम 4:30 बजे सभी दलों के Floor Leaders के साथ बैठक बुलाई है। यह बैठक विधायिका और न्यायपालिका के बीच सामंजस्य बैठाने के प्रयासों का हिस्सा होगी।
उन्होंने यह भी कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश ने इस विषय को सार्वजनिक डोमेन में लाने की पहल की है, जिससे न्यायपालिका की पारदर्शिता को बल मिला है।
संविधान संशोधन और संसदीय अधिकार
सभापति ने कहा कि यदि संसद कोई संविधान संशोधन करती है और उसे लागू नहीं किया जाता, तो संसद के पास यह सुनिश्चित करने की शक्ति है कि वह संशोधन आवश्यक संख्या में राज्य विधानसभाओं से अनुमोदित हो।
उन्होंने सदस्यों से आग्रह किया कि वे न्यायिक समीक्षा और संसदीय संप्रभुता से जुड़े इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर सकारात्मक संवाद में भाग लें। Floor Leaders के साथ बैठक का उद्देश्य सहयोग और समझ को बढ़ावा देना है, ताकि कानून के शासन और संसदीय प्रक्रियाओं की पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।
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