
प्रसिद्ध वैश्विक शांति दूत डॉ. के.ए. पॉल ने दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा पर भारी भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए उनकी तत्काल गिरफ्तारी और सीबीआई व ईडी जांच की मांग की है। डॉ. पॉल का दावा है कि न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर लगी आग के दौरान ₹1,000 करोड़ से अधिक की नकदी बरामद की गई थी, लेकिन इस मामले को दबाने के लिए चुपचाप धनराशि को हटा दिया गया और जज का तबादला इलाहाबाद हाईकोर्ट कर दिया गया।
भ्रष्टाचार के आरोप और न्याय की मांग
डॉ. पॉल के अनुसार, आग की घटना के दौरान बरामद हुई यह भारी धनराशि किसी संगठित घोटाले की ओर इशारा करती है। उन्होंने सवाल उठाया कि इस मामले में कोई आधिकारिक जांच क्यों नहीं हुई और क्यों न्यायाधीश को जवाबदेह नहीं ठहराया गया। उनका कहना है कि अगर देश की न्यायपालिका में ऐसे भ्रष्टाचार को नजरअंदाज किया जाता है, तो आम जनता का विश्वास पूरी तरह खत्म हो जाएगा।
डॉ. के.ए. पॉल ने इस मामले में सरकार और न्यायपालिका की निष्क्रियता पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि यदि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो यह भारत की न्याय व्यवस्था के लिए घातक साबित हो सकता है।
डॉ. पॉल की प्रमुख मांगें:
- न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की तत्काल गिरफ्तारी और उनसे सख्त पूछताछ की जाए।
- सीबीआई और ईडी की स्वतंत्र जांच के साथ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की निगरानी में निष्पक्ष सुनवाई हो।
- न्यायपालिका में पारदर्शिता लाने के लिए भ्रष्ट जजों की न्यायिक प्रतिरक्षा समाप्त की जाए।
- मीडिया स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से इस घोटाले को उजागर करे ताकि जनता को सच्चाई का पता चले।
- न्यायपालिका की जवाबदेही तय की जाए और राजनीतिक हस्तक्षेप को रोका जाए।
“न्यायाधीश कानून से ऊपर नहीं”: डॉ. के.ए. पॉल
डॉ. पॉल ने कहा, “अगर किसी आम नागरिक के घर से इतनी बड़ी रकम मिलती, तो तुरंत कार्रवाई होती। लेकिन जब एक हाईकोर्ट जज पर इतने गंभीर आरोप लगे हैं, तब भी जांच शुरू नहीं हुई। यह भारत की न्यायिक व्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है।”
उन्होंने कानून मंत्री और भारत के मुख्य न्यायाधीश से जवाब देने की मांग की और कहा कि यदि भ्रष्टाचार के इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो भारत की न्याय प्रणाली वैश्विक स्तर पर सवालों के घेरे में आ जाएगी।
जनता और मीडिया से अपील
डॉ. पॉल ने मीडिया और नागरिकों से अपील की कि वे इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाएं और सरकार से निष्पक्ष जांच की मांग करें। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ एक जज का मामला नहीं है, बल्कि पूरी न्यायपालिका की विश्वसनीयता और भारत के लोकतंत्र को बचाने का सवाल है।”