आईसीएआर, यूरोपीय संघ और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों द्वारा प्रमाणित—मिट्टी की उर्वरता और उत्पादकता दोनों में सुधार
नई दिल्ली:
भारत के किसान आज बढ़ती लागत, घटती मिट्टी की गुणवत्ता और जलवायु चुनौतियों से जूझ रहे हैं। ऐसे समय में सेफ रॉक मिनरल्स एक वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित समाधान के रूप में उभर रहा है, जो मिट्टी को पुनर्जीवित कर उत्पादन बढ़ाने और उर्वरक पर निर्भरता घटाने की दिशा में क्रांतिकारी कदम है।
हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न सुरक्षा तो दी, लेकिन इसके साथ ही रासायनिक उर्वरकों—विशेषकर यूरिया—के अत्यधिक प्रयोग ने मिट्टी की पारिस्थितिकीय संतुलन को बिगाड़ दिया। दशकों से चल रहे अंधाधुंध उपयोग ने मिट्टी के जैविक कार्बन को कम किया, सूक्ष्मजीवों की सक्रियता घटाई और पोषक तत्वों को थामने की क्षमता कमजोर कर दी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के अनुसार, देश की लगभग 40% कृषि भूमि मध्यम से गंभीर पोषक तत्वों की कमी झेल रही है, जबकि 30% से अधिक मिट्टियों में उत्पादकता और संरचनात्मक मजबूती घट रही है।
साथ ही, भारत की उर्वरक आवश्यकता का बड़ा हिस्सा आयात पर निर्भर होने के कारण यह क्षेत्र वैश्विक कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रति अत्यंत संवेदनशील है। वर्ष 2022 के बाद उर्वरक लागत में तेज़ वृद्धि ने विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों को प्रभावित किया। इस स्थिति में टिकाऊ मृदा पुनर्जीवन अब कोई विकल्प नहीं, बल्कि राष्ट्रीय प्राथमिकता बन चुका है।
सेफ रॉक के पीछे का विज्ञान
सेफ रॉक मिनरल्स प्राकृतिक सिलिकेट चट्टान से तैयार एक दीर्घकालिक मृदा-सुधारक है, जो पारंपरिक उर्वरक की तरह तात्कालिक पोषण नहीं देता, बल्कि मिट्टी की संरचना और पोषण-धारण क्षमता को मजबूत करता है। इसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटैशियम और अनेक सूक्ष्म पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, जो मिट्टी की धनायन विनिमय क्षमता (CEC) को बढ़ाते हैं। इससे मिट्टी पोषक तत्वों को अधिक प्रभावी ढंग से संग्रहित और आवश्यकतानुसार मुक्त कर पाती है।
तेज़ घुलनशील रासायनिक खादों की तुलना में सेफ रॉक धीरे-धीरे पोषक तत्व उपलब्ध कराता है, जिससे NPK के उपयोग की दक्षता बढ़ती है, पोषक तत्वों का बहाव कम होता है, सूक्ष्मजीवों की सक्रियता में वृद्धि होती है और मिट्टी की नमी संतुलित रहती है—यह विशेष रूप से अनियमित वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए अत्यंत उपयोगी है।
वैज्ञानिक परीक्षण और परिणाम
सेफ रॉक पर भारत और विदेशों में कई संस्थानों ने गहन अध्ययन किया है, जिनमें आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), कृषि विज्ञान केंद्र (KVKs), क्लेम्सन यूनिवर्सिटी (अमेरिका) तथा वियतनाम सरकार का ड्रैगन फ्रूट विकास कार्यक्रम (2018–19) शामिल हैं।
अमेरिका के क्लेम्सन यूनिवर्सिटी एडिस्टो रिसर्च सेंटर (साउथ कैरोलिना) में प्रोसेसिंग टमाटर पर किए गए अध्ययन में सेफ रॉक को 75 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मानक NPK के साथ उपयोग करने पर 28% अधिक पैदावार मिली। वहीं 20% कम नाइट्रोजन पर भी समान उपज प्राप्त हुई—जिससे उर्वरक की उल्लेखनीय बचत सिद्ध हुई। इसी प्रकार वियतनाम के ट्रॉपिकल फ्रूट परीक्षणों में एक बार सेफ रॉक के उपयोग से 30% कम नाइट्रोजन में 50% से अधिक उत्पादन प्राप्त हुआ, जो भारत के आम, संतरा, और अमरूद जैसी फसलों के लिए भी अत्यंत प्रासंगिक परिणाम हैं।
भारत में 2014–15 के दौरान हिमाचल प्रदेश के सिरमौर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) में आईसीएआर-आईएआरआई की देखरेख में गेहूं पर किए गए परीक्षणों में सेफ रॉक से उपचारित खेतों में 20.7% अधिक पैदावार दर्ज की गई। जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी का जैविक कार्बन 0.29% से बढ़कर 0.41% हुआ, जबकि कैल्शियम और मैग्नीशियम की उपलब्धता लगभग दोगुनी हो गई। साथ ही गेहूं के दानों में 20–65% अधिक आवश्यक पोषक तत्व (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, कैल्शियम, सल्फर) पाए गए।
2016–17 में आईसीएआर-आईएआरआई के माइक्रोबायोलॉजी डिवीजन के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. वाई. वी. सिंह द्वारा किए गए धान–गेहूं फसल चक्र अध्ययन में सेफ रॉक ने पोषक तत्व ग्रहण क्षमता में उल्लेखनीय सुधार दिखाया। धान में नाइट्रोजन अवशोषण 40–47%, फॉस्फोरस 60–70%, और पोटैशियम 44–53% तक बढ़ा। गेहूं में 10–13% अधिक पैदावार, 27% अधिक प्रोटीन, तथा 15–95% अधिक सूक्ष्मजीवी एंजाइम गतिविधि दर्ज की गई—साथ ही 25% कम उर्वरक उपयोग में ही यह लाभ मिला। यह शोध 2019 में इंडियन जर्नल ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज में प्रकाशित हुआ, जिसने भारत की प्रमुख अनाज फसल प्रणालियों के लिए सेफ रॉक की उपयुक्तता स्थापित की।
वैश्विक प्रमाण और वैज्ञानिक मान्यता
अगस्त 2024 में सेफ रॉक को यूरोपीय संघ (EU) टाइप एग्ज़ामिनेशन सर्टिफिकेट प्राप्त हुआ, जो 2019/1009 फर्टिलाइजिंग प्रोडक्ट्स रेगुलेशन (FPR) के अंतर्गत 2029 तक वैध है। यह प्रमाणपत्र STICHTING EFCI Register द्वारा जारी किया गया, जो इसे यूरोपीय संघ में CE मार्किंग के योग्य अकार्बनिक मृदा-सुधारक के रूप में मान्यता देता है।
विकासशील बाजारों में प्रवेश करने वाले खनिज-आधारित उत्पादों के लिए ऐसी अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति अत्यंत दुर्लभ है। यह प्रमाणन सेफ रॉक की सुरक्षा, प्रभावशीलता और पर्यावरणीय अनुरूपता को प्रमाणित करता है—जिससे भारतीय किसानों को उत्पाद की दीर्घकालिक विश्वसनीयता और मिट्टी-संगतता का भरोसा मिलता है।
घरेलू स्तर पर, सेफ रॉक के सूक्ष्म कण स्वरूप पोमराइट को नवंबर 2024 में आईसीएआर-आईएआरआई द्वारा प्रमाणित किया गया। डॉ. वाई. वी. सिंह द्वारा जारी पुष्टि-पत्र में यह स्पष्ट किया गया कि पोमराइट सेफ रॉक का उन्नत, सूक्ष्मकण संस्करण है, जो पोषक तत्वों की उपलब्धता को और बढ़ाता है तथा फोलियर स्प्रे, फर्टिगेशन और बीज उपचार के लिए उपयुक्त है। आईएआरआई के उसी अनुसंधान दल ने यह भी पुष्टि की कि पहले किए गए धान–गेहूं परीक्षणों के परिणाम पोमराइट पर भी लागू होते हैं, जिसमें 10–15% तक अतिरिक्त प्रदर्शन सुधार दर्ज हुआ।
भारत की नीति और सतत कृषि लक्ष्यों से तालमेल
नाइट्रोजन पर निर्भरता घटाकर और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाकर सेफ रॉक सीधे भारत की मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) और राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA) के उद्देश्यों के अनुरूप है। यह पेरिस समझौते के अंतर्गत भारत की राष्ट्रीय रूप से निर्धारित प्रतिबद्धताओं (NDCs) का भी समर्थन करता है, जिनका लक्ष्य उत्सर्जन तीव्रता में कमी और जलवायु-स्मार्ट खेती को बढ़ावा देना है।
सेफ रॉक का योगदान केवल उत्पादकता तक सीमित नहीं है—यह नाइट्रस ऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाकर राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्ययोजना (NAPCC) के उद्देश्यों के अनुरूप भी कार्य करता है। साथ ही, यह नाइट्रेट रिसाव को रोककर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भूजल प्रदूषण से सुरक्षा प्रदान करता है।
भारतीय किसानों के लिए परिवर्तनकारी अवसर
किसानों के लिए सेफ रॉक का लाभ केवल टिकाऊपन तक सीमित नहीं, बल्कि यह उनकी आमदनी में भी सीधा सुधार लाता है। फील्ड अर्थशास्त्र के अनुसार, इसके उपयोग से प्रति एकड़ ₹1,000–₹1,600 तक अतिरिक्त आय और उर्वरक खर्च में 20–25% तक बचत संभव है। लंबे समय में यह मिट्टी की सेहत बहाल कर किसानों को सब्सिडी पर निर्भरता घटाने, उत्पादन जोखिम कम करने और लाभप्रदता बढ़ाने में मदद करता है।
यदि इसे पीएम-किसान जैसी सरकारी योजनाओं से जोड़ा जाए, तो सेफ रॉक को राष्ट्रीय स्तर पर अपनाया जा सकता है—ऐसा पूरक इनपुट जो किसानों को मौजूदा प्रथाओं में बड़े बदलाव के बिना उत्पादकता सुधार का रास्ता देता है। यह जैविक और पारंपरिक दोनों खेती प्रणालियों में समान रूप से उपयुक्त है, जिससे यह वैज्ञानिक नवाचार और व्यावहारिक उपयोग के बीच सेतु का कार्य करता है।
जैसे-जैसे भारत जलवायु-स्मार्ट और उच्च दक्षता वाली कृषि की ओर बढ़ रहा है, सेफ रॉक मिनरल्स जैसी तकनीकें इस परिवर्तन की वैज्ञानिक रीढ़ बन रही हैं। आईसीएआर, अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान संस्थानों और यूरोपीय संघ प्रमाणन के साथ, सेफ रॉक केवल एक उत्पाद नहीं बल्कि भारत-केंद्रित सतत मृदा-संवर्धन का वैश्विक मानक है।
इसका सिद्ध रिकॉर्ड—बेहतर पैदावार, पोषक संतुलन, उर्वरक निर्भरता में कमी और पर्यावरणीय सुरक्षा—इसे भारत की भावी खाद्य-सुरक्षा और कृषि-स्थिरता का मजबूत स्तंभ बनाता है। आज यदि भारत खनिज-आधारित मिट्टी पुनर्जनन में निवेश करता है, तो वह एक ऐसी कृषि प्रणाली की नींव रखेगा जो अधिक उत्पादक, अधिक लचीली, पुनर्जीवित और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार होगी।




