सामाजिक बदलाव की धरती पर खड़ा बिहार, सुशासन को दी नई परिभाषा

बिहार ने पिछले बीस वर्षों में राजनीतिक स्थिरता, नीतिगत साहस और न्यायप्रिय फैसलों के ज़रिए यह साबित किया है कि सामाजिक परिवर्तन केवल नारों से नहीं, ठोस नीतियों और जनहितकारी योजनाओं से होता है

लेखक: अंकित पाल

10 जुलाई 2025, नई दिल्ली

देश की राजनीति और विकास से जुड़े विमर्शों में सामाजिक बदलाव का पहलू एक बार फिर से केंद्रीय महत्व पा रहा है। विशेष रूप से बिहार ने यह दिखाया है कि राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीति की धारा अब अलग नहीं, बल्कि एक-दूसरे की पूरक बन चुकी हैं। आगामी बिहार विधानसभा चुनाव ने इस चर्चा को और गति दे दी है।

पिछले दो दशकों में बिहार ने जिस राजनीतिक स्थिरता, विकास और सामाजिक परिवर्तन की दिशा में लगातार कदम बढ़ाए हैं, वह न केवल राज्य के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक मॉडल बन चुका है। इस परिवर्तन के केंद्र में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नेतृत्वकारी भूमिका रही है, जो आज भी हर राजनीतिक समीकरण में निर्णायक हैं।

इतिहास को वर्तमान से जोड़ते हुए देखें तो चंपारण सत्याग्रह से लेकर संपूर्ण क्रांति और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण तक बिहार सामाजिक चेतना और विवेक की भूमि रहा है। यह राज्य हमेशा सामाजिक समरसता और परिवर्तन के तर्क को साथ लेकर चला है, और आज भी वही परंपरा जारी है।

हाल ही में केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना की अधिसूचना जारी की, जबकि बिहार पहले ही जाति आधारित सर्वेक्षण पूरा कर चुका है। इस आधार पर आरक्षण बढ़ाने की कोशिश भी की गई, जो फिलहाल संवैधानिक सीमाओं के कारण रुकी हुई है। वहीं, सामाजिक सुरक्षा पेंशन को ₹400 से बढ़ाकर ₹1100 प्रति माह करने की घोषणा सरकार की सामाजिक प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

बिहार पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को 50% आरक्षण देने वाला देश का पहला राज्य बना था। इसके बाद शिक्षक, नगर निकाय और पुलिस में भी आरक्षण ने महिला सशक्तीकरण को ठोस आधार दिया। इन पहलों ने न केवल सत्ता का विकेंद्रीकरण किया, बल्कि लोकतंत्र की जड़ों को भी मजबूत किया है।

आज बिहार में 10.81 लाख स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से 1.35 करोड़ महिलाएं आत्मनिर्भर बन चुकी हैं। 2011 की जनगणना में महिला साक्षरता दर में 20% की वृद्धि दर्ज हुई, जिससे बिहार को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। इससे महिला प्रजनन दर भी 4.3 से घटकर 2.9 तक पहुंच गई है।

सुशासन के लिए सामाजिक आचरण और नैतिक साहस भी उतना ही जरूरी है। 2016 में नीतीश कुमार ने बिना किसी राजनीतिक लाभ-हानि की चिंता किए राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू कर दी, जो अब 9 वर्ष पूरे कर चुकी है। यह निर्णय राज्य में सामाजिक बदलाव का प्रतीक बन गया है।

इन प्रयासों ने बिहार को बदलाव और विकास की सामाजिक धुरी के रूप में स्थापित कर दिया है। नीतीश कुमार के दो दशकों के शासन में बिना किसी बड़े राजनीतिक शोरगुल के राज्य ने सामाजिक क्रांति का एक ऐतिहासिक अध्याय लिखा है, जो आज पूरे देश के लिए प्रेरणा बन सकता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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