दक्षिण-पूर्व एशिया में बढ़ता क्रिप्टो बाजार: भारत अब और देर नहीं कर सकता

 

दक्षिण-पूर्व एशिया आज तेजी से वर्चुअल डिजिटल एसेट्स (VDAs) या क्रिप्टो ट्रेडिंग का क्षेत्रीय केंद्र बनता जा रहा है और इसका कारण है वहां की सरकारों द्वारा अपनाया गया सक्रिय और स्पष्ट रुख, संस्थागत निवेश में तेजी और तकनीक को अपनाने की ऊँची दर। सिंगापुर से लेकर फिलीपींस तक, हर देश अपने-अपने ढंग से इस क्षेत्र में योगदान दे रहा है—जिससे नवाचार को गति तो मिल रही है पर साथ है नियामक चुनौतियां के हल भी निकल रहे हैं।

सिंगापुर इस क्षेत्र का नेतृत्व कर रहा है। वहां की मौद्रिक प्राधिकरण (MAS) ने डिजिटल एसेट्स के लिए अनुकूल नीतियाँ अपनाई हैं। एक अहम कदम है—सिंगापुर एक्सचेंज (SGX) द्वारा 2025 के दूसरे भाग में Bitcoin Perpetual Futures को लिस्ट करने की योजना, जो खासतौर पर संस्थागत निवेशकों के लिए है। जो दिखाता है कि सिंगापुर पारंपरिक वित्त और डिजिटल बाजारों के बीच पुल बनाना चाहता है।

वहीं, थाईलैंड अपने नियामकों को सख्त बना रहा है। वहां की SEC (सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज कमीशन) ने निर्देश दिया है कि सभी एक्सचेंज ग्राहकों की संपत्ति सुरक्षित और ऑडिट योग्य कोल्ड वॉलेट्स में ही रखें। साथ ही, थाईलैंड ने पर्यटकों को बिटकॉइन से भुगतान करने की अनुमति भी दी है। इतना ही नहीं, लाइसेंस प्राप्त एक्सचेंजों से होने वाले लेन-देन पर 5 साल तक टैक्स छूट दी गई है, जिससे वैधता को बढ़ावा मिल रहा है।

वियतनाम मई 2025 तक एक व्यापक कानूनी ढांचे की तैयारी में है जिसमें स्वामित्व अधिकार, मनी लॉन्ड्रिंग रोधी उपाय, कराधान, और लाइसेंसिंग जैसे पहलुओं को शामिल किया जाएगा। हालांकि अभी वहां क्रिप्टो को भुगतान माध्यम के रूप में मान्यता नहीं मिली है, लेकिन यह कदम स्पष्ट करता है कि सरकार डिजिटल संपत्तियों को औपचारिक मान्यता देने की दिशा में बढ़ रही है।

वहीं इंडोनेशिया भी इस मामले में पीछे नहीं है। वहां OJK रेग्युलेशन 3/2024, जनवरी 2025 से लागू हो चुका है, जो वित्तीय संस्थानों को नई तकनीकों (जैसे क्रिप्टो) के उपयोग और रिपोर्टिंग के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश देता है। इसका मकसद है—जिम्मेदार नवाचार और जोखिम प्रबंधन के साथ टिकाऊ विकास।

फिलीपींस में डिजिटल संपत्तियों का बाजार बेहद जीवंत और मजबूत है। Coins.ph जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर रोजाना 20 लाख से अधिक ट्रांजैक्शन होते हैं और इसके 1.8 करोड़ से अधिक यूज़र्स हैं। यह ट्रेंड युवा आबादी और विदेश से आने वाले रेमिटेंस द्वारा प्रेरित है। इससे यह स्पष्ट होता है कि डिजिटल वित्त सिर्फ एक नवाचार नहीं, बल्कि जरूरत है, और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने वाला साधन भी।

इसी के साथ संस्थागत निवेशक भी अब इस क्षेत्र में कदम रख रहे हैं। FalconX और Standard Chartered की साझेदारी इसका उदाहरण है, जिसके तहत सिंगापुर में संस्थागत क्रिप्टो सेवाएं शुरू होंगी और फिर पूरे एशिया में विस्तार होगा।

लेकिन इन सबके बीच अवैध गतिविधियों की चुनौती भी बनी हुई है। हाल ही में, अमेरिकी एजेंसी FinCEN ने कंबोडिया स्थित Huione Group पर $4 अरब की क्रिप्टो मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाया। इससे स्पष्ट होता है कि मजबूत एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग कानूनों और सीमा-पार नियामक सहयोग की जरूरत है।

जहां दक्षिण-पूर्व एशिया आगे बढ़ रहा है, भारत की क्रिप्टो नीति अभी भी प्रतिक्रिया आधारित और बिखरी हुई है। कई विभागों के बीच समन्वय की कमी है, और नीति प्रस्ताव अब तक मसौदे के रूप में भी नही पहुंचा है। क्रिप्टो पर कर लगाए जा चुके हैं, लेकिन एक स्पष्ट नियामक ढांचा नहीं है। इससे निवेशकों में भ्रम है और स्टार्टअप्स अनिश्चितता में हैं।

भारत को अब एक समन्वित नीति रोडमैप की सख्त जरूरत है। सबसे पहले एक अंतर-मंत्रालयी समिति गठित होनी चाहिए जो VDAs को लेकर स्पष्ट दिशा दे। इसके अलावा, क्रिप्टो और फिएट करेंसी में टैक्स समानता भी जरूरी है ताकि निवेशकों के लिए यह बाजार व्यवहारिक बन सके। स्पष्ट नियम, निवेशक सुरक्षा और नवाचार को बढ़ावा, यही भारत को डिजिटल संपत्ति क्षेत्र में आगे ला सकते हैं।

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