लियोनेल मेसी के भारत दौरे पर राजनीतिक तवज्जो को लेकर डॉ. के. ए. पॉल ने सार्वजनिक खर्च, प्राथमिकताओं और घरेलू खिलाड़ियों की उपेक्षा पर तीखी प्रतिक्रिया दी।
नई दिल्ली | 13 दिसंबर 2025
अंतरराष्ट्रीय शांति दूत और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. के. ए. पॉल ने भारत में विदेशी खेल सितारों को दी जा रही कथित राजनीतिक प्राथमिकताओं पर कड़ा एतराज जताते हुए व्यापक बहस छेड़ दी है। उनका कहना है कि इस तरह का महिमामंडन भारतीय युवाओं, स्थानीय खिलाड़ियों और दीर्घकालिक विकास के हितों के विपरीत है।
सोशल मीडिया पर सामने आए एक वीडियो संदेश में डॉ. पॉल ने अर्जेंटीना के फुटबॉल दिग्गज लियोनेल मेसी के भारत दौरे से जुड़े राजनीतिक और आर्थिक इंतजामों पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि जब देश के अपने खिलाड़ी बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तब विदेशी खिलाड़ी के स्वागत पर बड़े पैमाने पर संसाधन खर्च करना उचित नहीं है। डॉ. पॉल ने इस स्थिति को “देश की प्राथमिकताओं से भटकाव” बताया।
उन्होंने आरोप लगाया कि हैदराबाद में मेसी से मुलाकात के लिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा विशेष विमान का उपयोग किया गया, वहीं पश्चिम बंगाल में फुटबॉलर के सम्मान में महंगी प्रतिमा स्थापित करने की योजनाओं की भी आलोचना की। तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि विदेशी खेल हस्तियों के प्रति दिखाया जा रहा उत्साह शिक्षा और युवा विकास से जुड़े अधूरे वादों के विपरीत है।
डॉ. पॉल ने पूछा कि सैकड़ों करोड़ रुपये विदेशी खिलाड़ियों के सम्मान पर खर्च करने के बजाय भारतीय खेल प्रतिभाओं, प्रशिक्षण सुविधाओं और ढांचे में क्यों नहीं लगाए जा रहे। उन्होंने चीन, रूस और अमेरिका जैसे देशों का हवाला देते हुए कहा कि खेल अवसंरचना और प्रतिभा विकास में निरंतर निवेश के कारण ही ये देश ओलंपिक में बड़ी संख्या में पदक जीतते हैं।
उन्होंने विदेशी खिलाड़ियों की प्रतिमाएं लगाने की प्रवृत्ति पर भी आपत्ति जताई और कहा कि ऐसा सम्मान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, डॉ. भीमराव आंबेडकर और मदर टेरेसा जैसे राष्ट्रीय आदर्शों को मिलना चाहिए। डॉ. पॉल ने मेसी की यात्रा के आसपास बने राजनीतिक माहौल को अनुचित बताते हुए कहा कि इससे देश के मानदंड कमजोर होते हैं।
अपने अनुभव साझा करते हुए डॉ. पॉल ने बताया कि 1990 के दशक में उन्होंने इवांडर होलीफील्ड और महेश भूपति जैसे खिलाड़ियों को भारत में आमंत्रित किया था, जिनका उद्देश्य युवाओं को प्रेरित करना था, न कि सार्वजनिक संसाधनों का दिखावटी उपयोग।
उन्होंने कथित “फर्जी समझौतों” और उस्मानिया विश्वविद्यालय सहित शैक्षणिक संस्थानों को किए गए अधूरे वित्तीय वादों पर भी सवाल उठाए। डॉ. पॉल ने पूछा कि जिन धनराशियों का वादा किया गया, वे वास्तव में कहां और कैसे खर्च हुईं।
अपने संदेश के अंत में डॉ. के. ए. पॉल ने नागरिकों से अपने नेताओं से जवाबदेही तय करने की अपील की। उन्होंने कहा कि भारत का भविष्य अपने खिलाड़ियों और युवाओं में निवेश से तय होगा, और इस दिशा में ठोस बदलाव समय की मांग है।




