दिव्यांगता आंकड़ों में 0% से 67.84% तक भारी अंतर, UPPCS–UPSC उम्मीदवार के खिलाफ बहु-एजेंसी जांच शुरू

AIIMS की 1% रिपोर्ट बनाम अपीलेट बोर्ड के 67.84% आंकड़े—कोर्ट ने कहा यह ‘साधारण अंतर नहीं’

नई दिल्ली: एक विवादास्पद मामला दिल्ली हाईकोर्ट में पहुंचा है, जिसने PwBD कोटे के इस्तेमाल और दिव्यांगता प्रमाणन प्रक्रिया पर कई गंभीर सवाल उठा दिए हैं। यह प्रकरण शुभम अग्रवाल के इर्द-गिर्द घूमता है, जिनका चयन UPPCS-2019 और UPSC CSE-2024 में PwBD वर्ग से हुआ।

कोर्ट ने कहा—1% बनाम 67.84% ‘साधारण अंतर नहीं’, जांच दोबारा जरूरी

जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस मधु जैन की बेंच ने कहा कि यह मामला सिर्फ मेडिकल राय का अंतर नहीं, बल्कि “high-magnitude discrepancy” का मामला है। AIIMS की 1% रिपोर्ट और अपीलेट बोर्ड की 67.84% रिपोर्ट में असामान्य असमानता है। साथ ही, उम्मीदवार द्वारा पूर्व में प्रस्तुत प्रमाणपत्रों में 40% और 44% तक के दावे भी सामने आए। इन तथ्यों के आधार पर अदालत ने CAT के आदेश को सही ठहराया और तीसरी मेडिकल जांच का रास्ता साफ किया।

चार संस्थान, चार अलग आंकड़े… 0% से 67.84% तक का अंतर

बता दें कि गाजियाबाद और मेरठ के अधिकारियों द्वारा जारी किए गए सर्टिफिकेट्स में शुभम को 40% दिव्यांग दिखाया गया है। मगर UPSC के निर्देश पर AIIMS, RML और Safdarjung अस्पतालों में हुए परीक्षणों में उसकी दिव्यांगता क्रमशः 0%, 1% और 8.64% आंकी गई—जो PwBD कोटे की न्यूनतम सीमा (40%) से काफी कम है। मेडिकल बोर्ड ने उम्मीदवार की स्थिति को Non-progressive यानी समय के साथ न बढ़ने वाली अवस्था बताया है, जबकि दूसरी ओर UPPCS में यह उम्मीदवार 40% विकलांगता के बल पर नायाब तहसीलदार पद पर नियुक्त है।

प्रशिक्षण में शामिल होने का मुद्दा भी उठा

उम्मीदवार ने कोर्ट को बताया कि CAT के आदेश के बावजूद उन्हें प्रशिक्षण में शामिल नहीं होने दिया गया। इस पर कोर्ट ने कहा कि यह मुद्दा CAT स्वयं तय करेगा।

कोर्ट में UPSC का बयान – “उम्मीदवार कई बार मेडिकल जांच से हुआ गायब”

हाईकोर्ट में UPSC की ओर से दाखिल जवाब में बताया गया कि शुभम अग्रवाल पिछले कई वर्षों—विशेषकर 2017 से 2024 तक—बार-बार मेडिकल परीक्षण के निर्धारित दिनों पर अनुपस्थित होता रहा है। हर बार उसे PwBD कैटेगरी के लिए अमान्य पाया गया, लेकिन उम्मीदवार बाहरी सर्टिफिकेट्स के जरिए दिव्यांगता का दावा करता रहा।

सबसे बड़ा सवाल—“जब केंद्र के अस्पताल अयोग्य बताते रहे, तो UP Govt में दिव्यांग कोटे पर नौकरी कैसे?”

इस मामले में आशीष गुप्ता नामक एक शख्स ने शुभम अग्रवाल के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायतकर्ता ने बताया कि जब राष्ट्रीय स्तर के अस्पताल बार-बार उम्मीदवार को 40% दिव्यांगता मानक से नीचे बताते रहे, तब उसी उम्मीदवार की 2021 में UP Govt में Tehsildar पद पर दिव्यांग कोटे से नियुक्ति कैसे हुई? यह बिंदु कोर्ट के सामने सबसे गंभीर सवालों में से एक बनकर उभरा। जो चुनाव, मेडिकल सत्यापन और नियुक्ति प्रक्रियाओं में मौजूद संभावित खामियों को उजागर करता है।

परिवार की गवाही ने बढ़ाई शंका—“हमारे परिवार में कोई दिव्यांग नहीं”

मामले में एक और महत्वपूर्ण दस्तावेज कोर्ट में पेश किया गया—Sessions Trial No. 679/2023। इस मामले के दौरान शुभम के भाई अर्पित अग्रवाल ने जिरह में स्वीकार किया, “हमारे परिवार में कोई दिव्यांग व्यक्ति नहीं है।” यह बयान UPSC/UPPCS में जमा किए गए सर्टिफिकेट्स के बिल्कुल विपरीत है। इसके अलावा, उस केस में जमा मेडिकल दस्तावेज़ और FIR में संलग्न दस्तावेज़ आपस में मेल नहीं खाते, जिससे परिवार द्वारा बार-बार फर्जी मेडिकल रिकॉर्ड तैयार करवाने की आशंका और गहरी हो गई।

“यह पब्लिक इंटरेस्ट का मुद्दा है, कोई निजी विवाद नहीं”

शिकायतकर्ता आशीष गुप्ता ने अपनी शिकायत में कहा कि वह रिश्तेदारी में उम्मीदवार से जुड़े जरूर हैं, लेकिन उद्देश्य पूरी तरह जनहित से प्रेरित है। उनका कहना है कि यह मामला UPSC व UPPCS के प्रति जनता के भरोसे, दिव्यांग कोटे की पवित्रता और वास्तविक PwBD उम्मीदवारों के अधिकारों को बचाने से जुड़ा है।

कौन-कौन सी कार्रवाई मांगी गई?

कोर्ट से सभी डिसएबिलिटी सर्टिफिकेट्स की सत्यता की जांच, मेडिकल दस्तावेजों का फोरेंसिक ऑडिट, यदि धांधली पाई जाए तो विजिलेंस/कानूनी कार्रवाई, हाईकोर्ट, CAT और मेडिकल बोर्ड को निष्कर्षों की सूचना, फर्जी दस्तावेज़ तैयार करने वालों पर FIR और UP Govt में कार्यरत उम्मीदवार के तत्काल निलंबन की सिफारिश की मांग की गई है।

मामला अब शीर्ष संस्थाओं तक पहुंचा

UPSC, DoPT, UPPSC, DM मेरठ, CMO गाजियाबाद और केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) अब इस मामले की जांच कर रहे हैं। हाईकोर्ट ने भी स्पष्ट संकेत दिया कि इतनी बड़ी विसंगतियों को हल्के में नहीं लिया जा सकता। अदालत की निगरानी में होने वाली निष्पक्ष जांच यह तय करेगी कि क्या प्रणालीगत खामियां उजागर होंगी और क्या यह मामला भविष्य में ऐसे दुरुपयोग को रोकने की मिसाल बन पाएगा।

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