
नई दिल्ली, 5 मार्च 2025
कश्मीर विश्वविद्यालय में हाल ही में एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें भारत और मध्य एशिया के बीच रणनीतिक और आर्थिक सहयोग को मजबूत करने पर चर्चा हुई। इस अवसर पर प्रो. (डॉ.) रमाकांत द्विवेदी, जो नई दिल्ली स्थित एमईआरआई सेंटर फॉर इंटरनेशनल स्टडीज के प्रमुख और इंडिया सेंट्रल एशिया फाउंडेशन के निदेशक हैं, ने अपने विचार साझा किए। उनका व्याख्यान “भारत के रणनीतिक हित मध्य एशिया में: चुनौतियां और अवसर” विषय पर केंद्रित था।
इस सम्मेलन में भारत के प्रमुख विश्वविद्यालयों—जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, पांडिचेरी विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया—के विद्वानों के साथ-साथ फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और इटली के विशेषज्ञों ने भी भाग लिया। इसमें ट्रांस-हिमालयी क्षेत्र के बदलते सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर व्यापक चर्चा हुई।
प्रो. द्विवेदी ने कहा कि भारत और मध्य एशिया के बीच संबंध ऐतिहासिक रूप से मजबूत रहे हैं और आज भी दोनों क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने बताया कि मध्य एशियाई देशों में भारत के प्रति गहरी आत्मीयता है और वे द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करना चाहते हैं।
उन्होंने भारत की “कनेक्ट सेंट्रल एशिया” नीति का उल्लेख किया, जो व्यापार, बुनियादी ढांचे और ऊर्जा सहयोग को बढ़ाने पर केंद्रित है। हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि दोनों पक्षों को इन अवसरों का पूरा लाभ उठाने के लिए अधिक रणनीतिक और समन्वित प्रयास करने होंगे।
सिर्फ संभावनाओं पर ही नहीं, बल्कि प्रो. द्विवेदी ने धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद जैसी चुनौतियों पर भी ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने कहा कि भारत मध्य एशियाई देशों के साथ मिलकर अफगानिस्तान में अस्थिरता और आतंकवाद से निपटने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है।
उन्होंने ईरान के चाबहार बंदरगाह के महत्व को भी रेखांकित किया, जो भारत और मध्य एशिया के बीच दूरी को लगभग 1,500 किलोमीटर तक कम कर सकता है, जिससे व्यापार और संपर्क में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
कश्मीर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. निलोफर खान ने प्रो. द्विवेदी को उनके गहन और महत्वपूर्ण विचारों के लिए धन्यवाद दिया और उन्हें सम्मानित किया। इस कार्यक्रम में 100 से अधिक शोधकर्ताओं ने भाग लिया और भारत-मध्य एशिया संबंधों को मजबूत करने पर अपने विचार साझा किए।
यह सम्मेलन दोनों क्षेत्रों के बीच दोस्ती और सहयोग को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ। इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि भारत और मध्य एशिया को मिलकर काम करना चाहिए, जिससे उनके आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध और अधिक सुदृढ़ हो सकें।