तेलंगाना हाईकोर्ट में दलबदल विरोधी कानून पर देरी, न्याय प्रणाली पर उठे गंभीर सवाल

सातवीं सुनवाई के बाद भी फैसला लंबित

डॉ. पाल ने सुप्रीम कोर्ट से दखल की मांग की

तेलंगाना हाईकोर्ट में दलबदल विरोधी कानून के उल्लंघन से जुड़े एक अहम मामले की सुनवाई लगातार टलती जा रही है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत यह मामला बेहद महत्वपूर्ण है, लेकिन सातवीं सुनवाई के बाद भी कोई ठोस फैसला नहीं आया। याचिकाकर्ता डॉ. के.ए. पॉल ने अदालत में व्यक्तिगत रूप से अपनी दलीलें रखीं, लेकिन बार-बार हो रही देरी से न्यायिक प्रणाली की निष्पक्षता पर संदेह उत्पन्न हो रहा है।

दलबदल करने वाले विधायकों पर कार्रवाई क्यों नहीं?

डॉ. के.ए. पॉल ने अदालत में तर्क दिया कि भारत राष्ट्र समिति (BRS) के टिकट पर चुने गए कई विधायक कांग्रेस (INC) में शामिल हो गए, लेकिन उन्हें अब तक अयोग्य नहीं ठहराया गया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि दलबदल करने वाले जनप्रतिनिधियों को तुरंत अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए। उन्होंने 1975 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का उदाहरण दिया, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अयोग्य घोषित किया गया था, और 1998 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 12 बसपा विधायकों की सदस्यता समाप्त करने का भी जिक्र किया।

न्यायिक देरी से लोकतंत्र को खतरा

बार-बार सुनवाई टलने से न्यायिक जवाबदेही पर गंभीर प्रश्न उठ रहे हैं। संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की देरी भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर कर रही है। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित लोकतंत्रों में निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए दलबदल पर सख्त नियम हैं, लेकिन भारत में राजनीतिक दलों के बदलने की घटनाएं आम हो गई हैं। न्यायिक निष्क्रियता से ऐसे विधायकों को बचने का मौका मिल रहा है।

इस मामले को एक साल से अधिक हो चुका है, लेकिन अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है। डॉ. के.ए. पॉल ने अंतरराष्ट्रीय विधि समुदाय और मानवाधिकार संगठनों से इस मुद्दे पर संज्ञान लेने की अपील की है। उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया है ताकि संवैधानिक मूल्यों की रक्षा हो सके।

“न्याय में देरी लोकतंत्र के लिए काला अध्याय”

डॉ. पॉल ने चेतावनी दी कि यदि अदालतें संवैधानिक मामलों को लगातार टालती रहीं, तो इससे न केवल जनता का न्यायपालिका पर विश्वास कमजोर होगा, बल्कि लोकतंत्र भी खतरे में पड़ जाएगा। उन्होंने कहा, “अगर न्यायपालिका समय पर निर्णय नहीं लेगी, तो यह भारत के लोकतांत्रिक भविष्य के लिए एक काला अध्याय होगा। मैं देश और दुनिया के सभी नागरिकों से अपील करता हूं कि वे न्याय और कानून के शासन के समर्थन में खड़े हों।”

अब समय आ गया है कि न्यायपालिका अपने संवैधानिक दायित्व को प्राथमिकता दे और दलबदल करने वाले विधायकों के खिलाफ ठोस कार्रवाई सुनिश्चित करे।

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